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भगवान हं सूत्र
सूत्र परिचय:
प्रतिक्रमण की क्रिया पाप से मलिन हुई आत्मा की शुद्धि के लिए की जाती है । इस पावनकारी क्रिया में कोई विघ्न न आए तथा आत्मशुद्धि हो इसलिए परम शुद्ध स्वरूपी अरिहंतादि की वंदना करने हेतु देववंदन किया जाता है । उसके बाद अपने उपकारी गुरु भगवंतों को वंदन करने, इस सूत्र का उपयोग होता है । इस कारण इसे 'भगवदादि वंदन सूत्र' भी कहते हैं । __ मात्र चार ही पदों से बने इस छोटे से सूत्र में अपने परम उपकारी गुरु भगवंत, आचार्य भगवंत, उपाध्याय भगवंत तथा साधु भगवंतों को वंदन करके, साधक उनके प्रति कृतज्ञ भाव व्यक्त करता है ।
इस सूत्र का एक-एक पद, एक-एक खमासमण देकर बोला जाता है । 'इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए" इतने शब्दों द्वारा गुरु भगवंत से वंदन की अनुज्ञा मांगी जाती है । इन शब्दों से ऐसी भावना व्यक्त की जाती है कि, 'हे क्षमाश्रमण ! मैं आपको शक्तिपूर्वक एवं पाप व्यापार के त्याग पूर्वक वंदन करना चाहता हूँ' । आज्ञा लेने के बाद ‘मत्थएण वंदामि' पद के साथ इस सूत्र के भगवान् हं' वगैरह हर एक पद को क्रम पूर्वक जोड़ते हुए 'मत्थएण वंदामि भगवान् हं' इस प्रकार साथ में बोलकर, मस्तक को जमीन पर टेकते हुए नमनपूर्वक वंदन किया जाता है । इसके द्वारा - 'हे भगवंत! (हे 1. 'इच्छामि खमासमणो' का अर्थ सूत्र संवेदना भा. १ में देखिए ।