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अठारह पापस्थानक सूत्र
इस सूत्र का उच्चारण करते हुए सोचना चाहिए
“इन अठारह प्रकार के पापों में से हिंसादि अनेक पाप अपने सुख के लिए, सुविधा के लिए एवं शौक के लिए मैंने स्वयं किए हैं । करते समय पाप का भय भी नहीं रखा या उसके फल का विचार भी नहीं किया एवं कई पाप राजा, स्वजन एवं मित्रों के साथ भी किए हैं । तब भी इससे मुझे क्या फायदा होगा, उसका विचार भी नहीं किया एवं मनचाहे दृश्य देखते या मनचाही बातें - संगीत सुनते समय उसकी अनुमोदना भी की है और इस प्रकार अनंत कर्म बांधे हैं ।
भगवंत ! ये सब मेरे हृदय की कठोरता का परिणाम है । मैं उसकी माफी चाहता हूँ ।"
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