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________________ १७४ सूत्रसंवेदना-३ किसी के सच्चे झूठे अनेक दोषों को पीठ पीछे बोलना “पैशुन्य"17 कहलाता है । आगे पीछे का विचार किए बिना, किसी की कमजोर बात को जानकर, उसे दूसरे, तीसरे व्यक्ति तक पहुँचाना, यहाँ का वहाँ एवं वहाँ का यहाँ कहना, जिसे व्यवहार में चुगली कहते हैं, वही पैशुन्य नाम का पाप है । ऐसी आदत के कारण बहुतों के जीवन में आग लग जाती है, बहुतों का दिल दुःखता है, भाई-भाई के बीच, पति-पत्नी के बीच, पिता-पुत्र के बीच, वैर की शृंखला खड़ी हो जाती है, संबंधों में दरार पड़ती है । चुगली करने से चुगली करनेवाले के हाथ में तो कुछ नहीं आता, परन्तु सामनेवाले व्यक्ति का तो निश्चय से अहित होता है एवं खुद उस का भी अहित होता है । महापुण्य के उदय से मिली जीभ का उपयोग ऐसे हीन कार्यों में करने से भवांतर में जीभ नहीं मिलती । इसके अलावा, ऐसी आदत से बहुत से कर्मों का बंध होता है एवं बहुतों के साथ वैमनस्य पैदा होता है । इसलिए स्व-पर को हानिकारक इस निंदा-चुगली के पाप से तो साधक को बचना ही चाहिए। इस पद का उच्चारण करते समय दिवस के दौरान गलत आदत के कारण जाने-अनजाने किसी की निंदा हो गई हो, किसी की कमजोर बात किसी के आगे कही गई हो तो उस पाप को याद करके, “ऐसा घोर पाप मुझ से हो गया है, मेरी ऐसी बुरी आदत कब दूर होगी ?" ऐसे तिरस्कार के भाव से इन पापों की निंदा, गर्दा एवं प्रतिक्रमण करके “मिच्छा मि दुक्कडं" देना है । पंदरमें रति-अरति : पाप का पन्द्रहवाँ स्थान है ‘रति-अरति' । रति-अरति ये नोकषाय मोहनीय कर्म के उदय से हुआ आत्मा का विकार भाव है । ईष्ट वस्तु या व्यक्ति के मिलने पर आनंद की अनुभूति होना रति है, एवं अनिष्ट वस्तु या व्यक्ति आंखो के सामने आने पर घृणा होना, दुःख 17. पैशुन्यं - पिशुनकर्म प्रच्छन्नं सदसद्दोषविभावनम् । किसी के सच्चे या झूठे दोष को उसकी पीठ पीछे कहना पैशुन्य है।
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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