SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अठारह पापस्थानक सूत्र करने का, चेहरे के उपर श्रृंगार करने का, ब्यूटी पार्लर की सीढ़ी चढ़ने वगैरह का मन क्यों होता है ? ऐसी छोटी सी भी माया को याद करके उसकी निंदा, गर्हा एवं प्रतिक्रमण करना है । नवमे लोभ : पाप का नौवाँ स्थान 'लोभ' है । लोभ कषाय मोहनीय कर्म के उदय से होनेवाला आत्मा का विकार भाव है । तृष्णा, असंतोष, पदार्थ को पाने की इच्छा, मिलने के बाद रक्षा करने की या अधिक पाने की या उसमें वृद्धि करने की इच्छा, ये सब लोभरूप हैं १६७ अप्राप्त वस्तु को प्राप्त करने की एवं प्राप्त होने के बाद भी अधिक से अधिक पाने की इच्छा लोभरूप है; जैसे कि, लाख मिले तो करोड़ की एवं करोड़ मिले तो अरब की इच्छा करना, लोभ की वृत्ति है। लोभ के कारण भाई-भाई के बीच, पिता-पुत्र के बीच, देवरानी-जेठानी के बीच झगड़े होते हैं। लोभ के कारण मानव महाआरंभ से युक्त व्यवसाय करने को लालायित हो जाता है। लोभ के स्वरूप को समझाते हुए कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज फरमाते हैं कि, लोभ " सब दोषों की खान है, गुणों को निगलने में राक्षस तुल्य है, संकटरूप लत्ता के मूल जैसा है एवं धर्म-अर्थ-काम एवं मोक्ष ऐसे चारों पुरुषार्थ को साधने में बाधा करनेवाला है । दुनिया के जितने दोष हैं वे सब प्रायः लोभ से उत्पन्न होते हैं एवं जितने गुण हैं उन सब के मूल में लोभ का त्याग होता है । 13 जिस तरह " हिंसा सब प्रकार के पापों में प्रधान है, सभी कर्मों में मिथ्यात्व मुख्य है, रोगों में क्षय रोग बड़ा है, उस तरह लोभ सभी अपराधों का गुरु है । 12. आकरः सर्वदोषाणां गुणग्रसनराक्षसः । कन्दो व्यसनवल्लीनां लोभः सर्वार्थबाधकः ।। त्रैलोक्यामपि ये दोषास्ते सर्वे लोभसंभवाः । तथैवपि ते सर्वे लोभवर्जनात् ।। 13. हिंसेव सर्वपापानां मिथ्यात्वमिव कर्मणाम् । राजयक्ष्मेव रोगाणां, लोभः सर्वागसां गुरुः ।। योगशास्त्र - ४, गा. १८ योगसार ५:१८ - योगशास्त्र - प्र. ४, आंतरश्लोक - ७५१
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy