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________________ अठारह पापस्थानक सूत्र १५९ त्रीजे अदत्तादान : पाप का तीसरा स्थानक अदत्तादान' अर्थात् चोरी है। अदत्त = मालिक द्वारा नहीं दिया गया, आदान = ग्रहण करना उसे व्यवहार में चोरी कहते हैं । अदत्तादान याने चोरी चार प्रकार से होती है : १-स्वामी अदत्त, २-जीव अदत्त, ३-तीर्थंकर अदत्त, ४-गुरु अदत्त । श्रावक के लिए शायद इन चारों अदत्त से बचना संभव न हो, तो भी श्रावकों को 'स्वामी अदत्त' से तो जरूर बचना चाहिए । धन, संपत्ति आदि उसके मालिक की इच्छा के बिना ग्रहण करना, लूटपाट करना या बिना हक का लेना चोरी है । इस प्रकार चोरी करने से धन के मालिक को अत्यंत दुःख होता है । कभी तो उसकी मृत्यु भी हो जाती है । इसके अलावा, खुद के परिणाम भी अत्यंत क्रूर बनते हैं क्योंकि अशुभ लेश्या के अधीन हुए बिना जीव चोरी आदि निंदनीय प्रवृत्ति नहीं कर सकता । ऐसी क्रिया से आत्मा के उपर अत्यंत कुसंस्कार पड़ते हैं । ये संस्कार भवभवांतर में साथ चलते हैं पूर्व जन्म के कुसंस्कारों के कारण बहुतों को तो बाल्यावस्था से ही छोटी-छोटी चोरी करने की आदत होती है । स्कूल में जाएं तो पेन आदि चुराने की, घर में से चुपचाप चोरी छुपे पैसे लेने की, दुकान में से चोरी छुपे माल ले-लेने की एवं व्यापार में भी कम देना एवं अधिक लेने की आदत होती है ऐसे चोरी के कुसंस्कार मानव को कहां से कहाँ ले जाते हैं, उसका विचार करके, इस पाप से बचने का विशेष प्रयत्न करना चाहिए । इस पद का उच्चारण करते हुए दिन के दौरान, लोभ के अधीन होकर, अगर राज्य चोरी, दान चोरी या अन्य किसी भी प्रकार से छोटी बडी चोरी हो गई हो तो उसको याद करके, ऐसे पाप के प्रति तिरस्कार का भाव प्रगटकर पुनः ऐसे पाप न हो वैसे संकल्प के साथ मन, वचन, काया से मिच्छामि दुक्कडं देना चाहिए । 4. इन चार अदत्त की विशेष समझ के लिए देखें 'सूत्र संवेदना' भा-१ पंचिदिय सूत्र एवं भा-४ ‘वंदित्तु सूत्र' का तीसरा व्रत ।
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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