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________________ अठारह पापस्थानक सूत्र सूत्र परिचय: पापबंध के कारणभूत अठारह स्थानक का वर्णन इस सूत्र में है, इसलिए इसका नाम 'अठारह पापस्थानक सूत्र' है । पापबंध का मूल कारण मन की मलिन वृत्तियाँ हैं । कषायों एवं कुसंस्कारों के कारण प्रकट होने वाली ये मलिन वृत्तियाँ असंख्य प्रकार की होती हैं, तो भी सूत्रकारों ने सामान्यजन समझ सकें, इस प्रकार संक्षेप में उनके अठारह प्रकारों का इस सूत्र में वर्णन किया हैं । ___ पाप करवानेवाली वृत्तियाँ प्रायः पहले मन में जन्म लेती हैं एवं उसके बाद वाणी एवं काया द्वारा विस्तार पाकर अनेक कुप्रवृत्तियों रूप स्व-पर के दुःखों का कारण बनती हैं । दुःख किसी को प्रिय नहीं लगता, परन्तु दु:ख के कारण को सामान्यजन नहीं समझ सकते, इसलिए, इस सूत्र में हर कोई समझ सकें वैसे शब्दों में दुःख के कारण रूप पाप के अठारह स्थानों का निर्देश किया गया है । प्रतिक्रमण करते समय इन स्थानों को मात्र बोलने से कोई फायदा नहीं होता । इस सूत्र को बोलने से पहले उसके प्रत्येक पद पर मात्र विचार ही नहीं, बल्कि गहरी अनुप्रेक्षा करनी
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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