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________________ १५० सूत्रसंवेदना-३ योनि द्वारा जन्म मरण करते हैं एवं सुखमय जीवन जीने की इच्छा रखते हैं । ऐसे जीवों को हम अपने स्वार्थ के लिए, शौक या सजावट के लिए पीड़ा देते हैं या हिंसा करते हैं, उनके सुख की इच्छाओं को तोड़ देते हैं एवं अपने सुख के लिए उनके सुख को गौण करके उनको अनेक प्रकार से दुःखी करते हैं। 9. ८४,००,००० जीव योनि की गिनती इस तरह से हो सकती है - जिनका वर्ण, गंध, रस, स्पर्श एवं संस्थान एक जैसे हो वैसी अनेक योनि के समुदाय की एक योनि गिनी जाती है। वर्ण-५ : लाल, नीला, पीला, काला एवं सफेद गंध-२ : सुरभि गंध एवं दुरभि गंध । रस-५ : तीखा, कडवा, खट्टा, कषाय, खारा स्पर्श - ८ : स्निग्ध, रूक्ष, शीत, उष्ण, मुलायम, खुररबुड, कठोर एवं नरम संस्थान-५ : गोल, चोरस, लंबचोरस, त्रिकोण, परिमंडला ५ x २ x ५ x ८ x ५ = २००० । वर्णादि के इस प्रकार २००० भेद होते हैं । पृथ्वीकाय जीवों के मूल भेद ३५० x २००० = ७,००,००० अप्काय के जीवो के मूलभेद ३५० x २००० = ७,००,००० तेउकाय जीवों के मूल भेद ३५० x २००० = ७,००,००० वायुकाय जीवों के मूल भेद ३५० x २००० = ७,००,००० प्रत्येक वनस्पतिकाय जीवों के मूल भेद ५०० x २००० = १०,००,००० साधारण वनस्पतिकाय जीवों के मूल भेद ७०० x २००० = १४,००,००० बेइन्द्रिय जीवों के मूल भेद १०० x २००० = २,००,००० तेइन्द्रिय जीवों के मूल भेद १०० x २००० = २,००,००० चउरिन्द्रिय जीवों के मूल भेद १०० x २००० = २,००,००० देवता के जीवों के मूल भेद २०० x २००० = ४,००,००० नारकी के जीवों के मूल भेद २०० x २००० = ४,००,००० तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों के मूल भेद २०० x २००० = ४,००,००० मनुष्य जीवों के मूल भदे ७०० x २००० = १४,००,००० कुल ८४,००,००० जीवायोनि ये ८४ लाख योनि की गणना में ३५० आदि जो जीवों के मूल भेद बताए हैं, उनको ढूँढने का हमने प्रयत्न किया है । परन्तु कोई पुस्तक या ज्ञानी गुरु भगवंतों से संतोष जनक उत्तर मिला नहीं । किसी भी विशेषज्ञ को इस विषय में कहीं भी कुछ भी प्राप्त हो तो पाठ के आधार के साथ हमें बताने की कृपा करेंगे ।
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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