________________
सात लाख सूत्र
.
१४९
(३) खेचर जीव - अर्थात् आकाश में उड़नेवाले जीव-चिड़िया कबूतर, तोता, मैना वगैरह ।
इन जीवों की प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी भी तरीके से विराधना हुई हो, तो उनको स्मृतिपटल पर लाकर यह पद बोलते हुए क्षमापना करनी चाहिए ।
चौदह लाख मनुष्य : मनुष्य की योनि चौदह लाख हैं ।
अलग अलग अपेक्षा से मनुष्य के बहुत से भेद हैं, तो भी सामान्य से कर्मभूमि के, अकर्मभूमि के एवं अंतीप के ऐसे तीन भेद मुख्य हैं । उन सब के संमूर्छिम एवं गर्भज ऐसे दो तरह के विभाग - भेद हैं । गर्भज मनुष्य अर्थात् गर्भ में उत्पन्न होनेवाले मनुष्य । गर्भज मनुष्यों से अलग हुए मल, मूत्र, श्लेष्म आदि अशुचि पदार्थों में एवं अशुचि स्थानों में भी जो अपनी आँखों से दिखाई नहीं देते वैसे मनुष्य खुद ब खुद उत्पन्न होते हैं, उन्हें संमूर्छिम मनुष्य कहते हैं तथा मुख की लार का जिसमें मिश्रण होने की संभावना है वैसे अन्न, पानी आदि में भी दो घडी (४८ मिनिट) के बाद संमूर्छिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं । उपयोगपूर्वक जीवन न जीने से - सावधानी न रखने से इन जीवों की विराधना होती है ।
इसके अलावा किसी भी जीव को दुःख देनेवाली वाणी बोलना, उसके उपर राग या द्वेष करना या उससे अधिक काम लेना, उन जीवों को मारना, पीटना, कैद में रखना, जलाना आदि अनेक प्रकार से मनुष्यों की हिंसा सम्भवत होती है । उन सब को याद करके यह पद बोलते हुए उनकी क्षमायाचना करनी चाहिए।
ऐवंकारे चोराशी लाख जीवायोनिमाहे माहरे जीवे जे कोई जीव हण्यो होय, हणाव्यो होय, हणतां प्रत्ये अनुमोद्यो होय, ते सविहु मन-वचन-कायाए करी मिच्छा मि दुक्कडं । इस प्रकार से सब जीवों की योनियों को जोड़ें तो ८४ लाख होता है। कर्म के बंधन से बंधे हुए अनंत जीव चौदह राजलोक रूप क्षेत्र में ८४ लाख