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मूल सूत्र :
सूत्रसंवेदना - ३
सात लाख पृथ्वीकाय,
सात लाख अप्काय,
सात लाख ते काय,
सात लाख वाउकाय,
दश लाख प्रत्येक वनस्पतिकाय,
चौद लाख साधारण वनस्पतिकाय,
बे लाख बेइन्द्रिय,
बे लाख इन्द्रिय,
बे लाख चउरिन्द्रिय,
चार लाख देवता,
चार लाख नारकी,
चार लाख तिर्यंच-पंचेन्द्रिय,
चौद लाख मनुष्य,
एवंकारे चोराशी लाख जीवायोनिमांहे माहरे जीवे जे कोई जीव
हण्यो होय, हणाव्यो होय, हणतां प्रत्ये अनुमोद्यो होय, ते सविहु मन-वचन-कायाए करी मिच्छा मि दुक्कडं । विशेषार्थ :
सात लाख पृथ्वीकाय : पृथ्वीकाय जीवों की योनि सात लाख है ।
इस जगत् में रहे हुए सर्व जीवों के सामान्य से दो प्रकार हैं : त्रस एवं स्थावर । उसमें अपनी इच्छानुसार हलन चलन करनेवाले जीवों को त्रस जीव कहते हैं एवं अपनी इच्छानुसार हलन चलन न कर सकनेवाले जीव स्थावर जीव