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________________ सात लाख सूत्र १४१ सूत्र है । साधक ने यदि ८४ लाख योनियों में उत्पन्न हुए अनंत जीवों में से किसी का हनन किया हो, दूसरों के द्वारा किसी का हनन करवाया हो या उनको हनन करनेवाले का अनुमोदन किया हो, तो इस सूत्र द्वारा उन सब निंदनीय कृत्यों का ‘मिच्छामि दुक्कडं' दिया जाता है । यह सूत्र बहुत छोटा एवं सरल है, परन्तु शास्त्रकारों ने इस अद्भुत रचना द्वारा हम को अनेक तरह के दुःखों से बचा लिया है। ऐसे सूत्र द्वारा यदि दुनिया के एक एक जीव को दिए परिताप का 'मिच्छा मि दुक्कडं' न दिया जाय तो कैसे दुःख सहन करने पड़ेंगे उनकी कल्पना करने पर भी हृदय कांप उठेगा; क्योंकि दुनिया का दस्तूर है कि, जीव अन्य को जैसी पीड़ा देता है, उसे भविष्य में उससे अनेकगुनी पीड़ा भुगतनी पड़ती है । ___ अरे ! कर्म सत्ता का तो ऐसा नियम है कि, एक बार किसी जीव को जितना दुःख दिया हो, उससे कम से कम १० गुना दुःख भुगतना पड़ता है एवं यदि उसमें भाव की तीव्रता हो तो १००० गुणा भी दुःख भुगतना पड़ता है । महामहोपाध्याय भगवंत प्रथम पापस्थानक की सज्झाय में कहते हैं, 'होए विपाके दस गणुं रे, एक वार कीयुं कर्म; शत-सहस कोडी गमे रे, तीव्र भावना मर्म...३ उपकार तो भगवान का है, कि ऐसा दुःखमुक्ति का मार्ग बताया एवं उपकार इस सूत्र के रचनाकार कोई अनजाने महात्मा का, कि जिन्होंने प्रभु के मार्ग को ऐसे सरल शब्दों में हम तक पहुँचाया । गुजराती भाषा में रचे हुए इस सूत्र के रचनाकार कौन हैं ? इसे कब से बोलना शुरू किया गया ? इसके संबंध में कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता। स्थानकवासी संप्रदाय में भी यह सूत्र बोला जाता है, इसलिए अनुमान से यह सूत्र ५०० वर्ष से अधिक पुराना होना चाहिए ।
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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