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सात लाख
सूत्र परिचय:
इस सूत्र में चौरासी लाख जीवयोनियों में उत्पन्न हुए जीवों की क्षमा मांगी जाती है, इसलिए इसे 'जीव क्षमापना सूत्र' भी कहते हैं ।
जीवों के उत्पत्तिस्थानों को 'जीवयोनि' कहते हैं । इस जगत् में ऐसी योनियाँ असंख्य हैं, तो भी जिनके वर्ण, गंध, रस, स्पर्श समान होते हैं, उन तमाम योनियों का एक प्रकार में समावेश होता है । उस तरीके से गिनने से योनियों की संख्या ८४ लाख होती हैं, वैसा 'समवायांग' वगैरह आगमों में एवं ‘प्रवचनसारोद्धार' आदि ग्रंथ में कहा गया है ।
इस सूत्र में एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों की ८४ लाख प्रकार की योनियाँ गिनाई हैं । इन ८४ लाख योनिओं में उत्पन्न हुए सर्व जीवों को सुख प्रिय होता है, ऐसा होते हुए भी हम अपने स्वार्थ या सुख के लिए उन जीवों का वध करते हैं, दुःख पहुँचाते हैं । इस प्रकार किसी जीव का वध करने से, या उसको दुःख पहुँचाने से उन जीवों के साथ वैर का अनुबंध होता है । ऐसे वैर के अनुबंध को तोड़ने, सब जीवों के साथ मैत्री भाव को टिकाने एवं किसी को दुःख देकर बाँधे हुए कर्म एवं उसके कुसंस्कारों से मुक्त होने के लिए ही यह