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________________ १३९ सुगुरु वंदन सूत्र जिज्ञासा : क्या सिर्फ निन्दा करना काफी नहीं, गर्दा करने की क्या आवश्यकता है ? तृप्ति : निंदा करने से पाप के अनुमोदन का परिणाम नष्ट हो जाता है, जब कि गुण संपन्न गुरु भगवंत के पास गर्दा करने से अपने से हुए दोषपूर्ण व्यवहार के प्रति तिरस्कार तीव्र बनता है एवं गुरु भगवंतों के गुणों के प्रति हृदय में बहुमान होता है । गुरु भगवंत भी शिष्य की बात सुनकर, उसके उपर घृणा या तिरस्कार न करके उसको इस पाप से मुक्त होने का मार्ग बताते हैं अर्थात् गर्दा करने से शिष्य सरलता से सन्मार्ग पर चल सकता है एवं मान कषाय का नाश करके नम्रतादि गुणों को प्रकट कर सकता है । इसलिए वह भी आवश्यक है। अप्पाणं वोसिरामि ।- पाप करने वाली आत्मा की वह पाप युक्त अवस्था का मैं त्याग करता हूँ। निंदा एवं गर्दा करने के बाद, गुरु की आशातनारूप पाप की अनुमोदना का लेशमात्र भाव भी रह न जाए, इसलिए वैसा पाप करनेवाली अपनी आत्मा के पर्यायों को मैं वोसिराता हूँ अर्थात् कि वैसे पर्यायों का मैं त्याग करता हूँ । आत्मा नित्य है एवं पर्याय प्रतिपल नष्ट होनेवाले हैं । प्रतिपल नष्ट होनेवाले पर्याय वैसे तो नष्ट हो ही गए हैं, परन्तु नष्ट हुए वे पर्याय आत्मा के उपर पापों के संस्कार छोड़ जाते हैं । वे संस्कार अभी भी नष्ट नहीं हुए । ये संस्कार निमित्त मिलने पर पुनः जागृत न हों एवं पुनः गुरु आशातना जैसे भयंकर पाप के मार्ग पर न चला जाए इसलिए साधक इन पदों द्वारा उन दुष्ट संस्कारों को नष्ट करने का यत्न करता है । इस प्रकार इस सूत्र द्वारा गुरु भगवंत के साथ वार्तालाप करते हुए शिष्य ने गुरु की सुखशाता पृच्छा वगैरह करके दिन के दौरान गुरु की जो जो आशातना हुई हो उसका स्मरण किया एवं ऐसी आशातना पुनः पुनः न हो उसके लिए निंदा, गर्दा एवं वोसिराने कि क्रिया की । 8. 'वोसिरामि' शब्द की विशेष समझ के लिए सूत्र-संवेदना-१ में से 'अन्नत्थ' या 'करेमि भंते' सूत्र देखना ।
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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