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सूत्रसंवेदना-३ उपचार से संतोष भी पाएं, तो भी भौतिक आशयवाली भक्ति मिथ्या उपचार ही बनती है । यह सब मिथ्या उपचाररूप भक्ति गुरु की आशातना है ।
यह पद बोलते हुए ऐसी कोई गलत भक्ति हुई हो तो उसको स्मृति में लाकर, उसकी निंदा, गर्दा करके भविष्य में ऐसी भूल न हो उसके लिए सावधान बनता है ।
सव्वधम्माइक्कमणाए आसायणाए - (अष्ट प्रवचन माता एवं सर्व धर्म के अतिक्रमणरूप आशातना से (मैने जो कोई अतिचार का सेवन किया हो, उसका हे क्षमाश्रमण ! मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ।)
आत्म कल्याण कारक सर्व प्रकार के धर्मों का उपदेश गुरु भगवंत देते हैं। जैसे कि, क्षमादि दस यतिधर्म का पालन करना, समता के भाव में रहना, पाँच महाव्रतों का सम्यग् प्रकार से सेवन करना, समिति गुप्ति का पालन करना वगैरह... गुरु भगवंत के द्वारा उपदिष्ट धर्म का पालन करना मतलब के वचनों का पालन करना । गुरु के वचन का पालन ही गुरु की उत्तम भक्ति है। इसलिए समिति गुप्ति वगैरह का पालन जब न हो तब उनके वचनों का अनादर होता है एवं गुरु वचन का उल्लंघन गुरु की आशातना ही है । यह पद बोलते हुए दिन के दौरान गुरु द्वारा उपदिष्ट किसी भी प्रकार के धर्म का उल्लंघन हुआ हो या, उनका यथायोग्य पालन न हुआ हो तो उन सब आशातनाओं को याद करके उनकी निंदा, गर्दा एवं प्रतिक्रमण करना है ।
जो मे अइआरो कओ तस्स खमासमणो ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि - हे क्षमाश्रमण ! (उपरोक्त आशातना के कारण) मुझ से जो कोई भी अतिचार हुआ हो उसकी मैं प्रतिक्रमण करता हूँ निंदा करता हूँ, गर्दा करता
अंत में शिष्य कहता है, क्षमा के सागर हे गुरुदेव ! दिवस के दरम्यान जो जो आशातनाएँ सम्मानित हैं, वे उपर बताई गई हैं । उनमें से जो जो आशातनाएँ मुझ से हुई हैं, आप को परतंत्र रहने की शपथ लेने के बावजूद स्वच्छंदी बनने के कारण