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________________ सुगुरु वंदन सूत्र १३३ उनको परेशान करने का विचार करना, ऐसी कोई भी प्रवृत्ति माया से हुई गुरु की आशातना है । ___ पढ़ने आदि के लोभ से गुरु जो कार्य कहें उसे न करना अथवा जैसे तैसे कर देना, गुरु मुझे पढ़ाए या अच्छा आहार, वस्त्र आदि दें ऐसे लोभ से गुरु की सेवा करना, गुरु के दिए हुए उपकरण वगैरह किसी को न देने पड़ें, इसलिए छिपाकर । रखना, ऐसी कोई भी प्रवृत्ति लोभ से हुई गुरु की आशातना है । इन पदों का उच्चारण करते हुए दिवस के दौरान कषाय के अधीन होकर गुरु संबंधी सूक्ष्म या बादर जो कोई अशुभ वाणी, व्यवहार या विचार हुआ हो तो उनको स्मृति में लाना चाहिए । 'मैंने ये खूब गलत किया है ।' ऐसा सोचकर तीव्र पश्चात्ताप के साथ उसके लिए क्षमा मांगनी चाहिए । सव्वकालिआए - सर्व काल संबंधी (भूतकाल में, भविष्य काल में एवं वर्तमान काल में हुई आशातना में कोई भी अतिचार लगा हो तो उसका हे क्षमाश्रमण ! मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ।) इस भव में या पूर्व भवों में गुरु के प्रति अश्रद्धा की हो, अविनय किया हो या मन-वचन-काया से कोई आशातना की हो, वह भूतकाल संबंधी गुरु की आशातना है । गुरु की तरफ से असंतोष होते हुए, ‘अवसर मिलने पर गुरु को सुना दूंगा, उनका कुछ अनिष्ट करूंगा'- ऐसा सोचना या बोलना भविष्य संबंधी गुरु की आशातना है । इसके अलावा, वर्तमान में गुरु की भक्ति, विनय, वैयावच्च न करना, गुरु के प्रति कोई विपरीत भाव रखना वर्तमान संबंधी गुरु की आशातना है । जिज्ञासा : वर्तमान एवं भविष्य संबंधी गुरु की आशातना का तो ख्याल आ सकता है, परन्तु इस भव में अज्ञानतावश की गई गुरु की आशातना या पूर्व भव स्वरूप भूतकाल में हुई गुरु की आशातना का ख्याल किस तरीके से आए? तृप्ति : पुण्य के उदय से वर्तमान में गुणवान गुरु भगवंत का सान्निध्य मिलने पर भी गुरु चरणों में जीवन समर्पित करने का भाव एवं प्रयत्न करने पर भी,
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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