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________________ सुगुरु वंदन सूत्र कुछ नहीं कहते । उनको मेरे प्रति द्वेष भाव है एवं दूसरों के प्रति लगाव है । ऐसे उलटे विचार मिथ्याभावरूप होने से गुरु की आशाता है । १३१ 1 हकीकत में सद्गुरु भगवंतों को कभी भी किसी के प्रति पक्षपात नहीं होता नाही किसी के प्रति द्वेष होता है । वे तो मात्र गुण के रागी होते हैं एवं दोष के द्वेषी । दोषवान व्यक्ति के प्रति उन्हें द्वेष नहीं होता, उनके प्रति उनको मात्र करुणा बुद्धि होती है । वे करुणा बुद्धि से ही उनको सुधारने का यत्न करते हैं । ऐसे प्रसंग पर चोयणा करते हुए उनको कभी कडवे शब्द बोलने पड़ते हैं, बाहर से आवेश भी बताना पड़ता है; परन्तु अन्दर से तो वे शांत, प्रशांत एवं निष्पक्ष ही होते हैं । ऐसे करुणासागर गुरु भगवंत के विषय में कोई भी अवास्तविक विचार करना गुरु की मिथ्याभावरूप आशातना है । यह पद बोलते हुए दिन के दौरान जाने-अनजाने खुद से जो भी आशातना हुई हो, उसे याद करके सोचना चाहिए, “मैं कैसा अधम हूँ, कैसी विपरीत मतिवाला हूँ कि गुरु की कही हुई हितकारी और सरल बात का भी स्वीकार नहीं कर सकता । इस अपराध के लिए क्षमा मांगता हूँ एवं पुनः ऐसा न हो वैसा संकल्प करता हूँ ।” मण दुक्कडाए, वय दुक्कडाए, काय दुक्कडाए - मन संबंधी दुष्कृत्य, वचन संबंधी दुष्कृत्य एवं काय संबंधी दुष्कृत्य ( = आशातना द्वारा मुझे जो कोई अतिचार लगा हो, उनका हे क्षमाश्रमण ! मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ।) "गुरु भगवंत तो पक्षपाती हैं, उनकी जो सेवा करता है वह ही उनको अच्छा लगता है । उस शिष्य को वे पढ़ाते हैं मुझे नहीं पढ़ाते, दूसरों को समय देते हैं, मेरे लिए तो उनके पास समय ही नहीं है" - इस प्रकार कषाय के अधीन होकर गुरु के लिए अनुचित विचार करना मन संबंधी दुष्कृत्य है I गुरु भगवंत के साथ विनयपूर्वक बातचीत नहीं करना, पूछे हुए प्रश्नों का संतोष कारक उत्तर न देना, उनके सामने ऊँची आवाज में बोलना इत्यादि वाणी संबंधी दुष्कृत्य है ।
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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