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________________ १३० सूत्रसंवेदना-३ से नजदीक जाने रूप आशातना हुई हो, तो वह गुरु भगवंत की क्षेत्र विषयक आशातना है। गुणवान गुरु भगवंत जब बुलाए या कोई प्रश्न पूछे अथवा तो कोई कार्य का इशारा करें, तब शिष्य को विनयपूर्वक विलंब किए बिना प्रत्युत्तर देना चाहिए एवं बताया हुआ कार्य तुरंत ही करना चाहिए । प्रत्युत्तर देने में या कार्य करने में कभी विलंब हुआ हो तो वह गुरु भगवंत की कालविषयक आशातना गुणों के सागर गुरु भगवंत के प्रति अश्रद्धा या अनादर के परिणामपूर्वक मन-वचन एवं काया से किसी भी प्रकार का अनुचित व्यवहार हुआ हो, तो वह गुरु भगवंत के प्रति भाव विषयक आशातना है । इन पदों को बोलते समय शिष्य के हृदय में ऐसा भाव होना चाहिए, "गुणवान गुरु भगवंत की मुझसे किसी भी प्रकार की आशातना नहीं होनी चाहिए.. फिर भी प्रमादादि किसी दोष से अगर कोई आशातना हुई हो तो उन भूलों का पुनरावर्तन न हो, इसलिए मैं गुरु भगवंत से क्षमा मांगता हूँ ।” इस प्रकार तैंतीस आशातनाओं में से जो जो आशातना हुई हो, उनको याद करके दुःखार्द्र हृदय से विनम्र भाव से गुरु भगवंत से क्षमा मांगनी चाहिए । तैंतीस आशातनारूप अतिचार बताने के बाद, अब अन्य अतिचार बतातें हुए कहते हैं जं किंचि मिच्छाए - (आगे बताये हुए) मिथ्यात्व (आदि) जिस किसी भाव द्वारा (मैंने जो कोई अतिचार किया हो तो उसका हे क्षमाश्रमण ! मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ।) मिथ्याभाव याने गलत भाव, गुरु ने जिस भाव से कहा हो उससे विपरीत समझना । हित के लिए कही गई गुरु की बात के संदर्भ में भी ऐसा सोचना कि, सभी ही तो ऐसी भूल करते हैं तो भी गुरु भगवंत मुझे ही डाँटते हैं, दूसरों को
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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