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________________ सुगुरु वंदन सूत्र १२१ हैं - “मेरा दिन खूब सुखपूर्वक बीता है" ये शब्द सुनकर शिष्य को अत्यंत आनंद होता है । यह आनंद गुरु के सत्कार्य की अनुमोदना स्वरूप है । गुरु भगवंत के स्वास्थ्य के विषय में शिष्य की चिंता का भाव एवं तहत्ति' रूप गुरु का प्रत्युत्तर सुनकर प्रकट हुए आनंद का भाव, ये दोनों शुभ परिणाम, गुणप्राप्ति में विघ्न करनेवाले कर्मों का नाश करते हुए शिष्य के लिए गुण प्राप्ति का कारण बनते हैं। अव्याबाध-पृच्छा-स्थान के इन पदों को बोलते एवं सुनते हुए सोचना चाहिए, 'जिनके स्वास्थ्य की सुरक्षा में केवल अशुभ कर्मबंध था वैसे कुटुंबपरिवार, स्नेही-स्वजनों के शरीर की गलत चिंताएँ करके मैंने अपना कीमती समय एवं शक्ति को व्यर्थ गँवाया है एवं बहुत कर्मों का बंध किया है । मेरा सद्भाग्य है कि आज संसार सागर से पार ले जानेवाले जहाज समान सद्गुरु भगवंत मुझे मिले हैं । तन एवं मन द्वारा वे मेरे जैसे अनेकों के उपर भावोपकार कर रहे हैं । अब मेरा कर्तव्य है कि, अपने शरीर का बलिदान करके भी उनकी सुरक्षा करूँ क्योंकि उनके शरीर की अनुकूलता में हम सबकी आत्मा की अनुकूलता है । उनके द्रव्यप्राण की अबाधा में हमारे भावप्राण सुरक्षित हैं । उनका दिन अच्छी तरह गुजरे उसमें ही हमारा दिन, घड़ी एवं पल सुधरनेवाले हैं।' ४.संयमयात्रा पृच्छा स्थान: दिन संबंधी सुखशाता की पृच्छा करने के बाद शिष्य गुरु की संयम यात्रा के विषय में पृच्छा करता है :
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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