________________
११४
सूत्रसंवेदना-३
शिष्य, क्षमाश्रमण ऐसे गुरु भगवंतों को अपना वंदन स्वीकारने का अनुरोध करता है ।
खमासमणो - क्षमाश्रमण !
क्षमादि दश धर्म जिनमें मुख्यतया रहते हों, उनको क्षमाश्रमण कहते हैं अथवा तप, स्वाध्याय या ध्यानादिरूप साध्वाचार की प्रवृत्ति जो क्रोधादि दोषों के नाश के लिए एवं क्षमादि गुणों की प्राप्ति के लिए करते हों उनको क्षमाश्रमण कहते हैं । यहाँ यह शब्द गुरु भगवंतों को संबोधित करने प्रयुक्त हुआ है । इस सूत्र द्वारा ऐसे क्षमाश्रमण को वंदन करना है । जिज्ञासा : क्षमाश्रमण को वंदन किस लिए करना चाहिए ?
तृप्ति : परम सुखरूप मोक्ष को चाहनेवाला शिष्य समझता है कि कषायों के त्याग एवं क्षमादि गुणों के पालन के बिना सुख संभव नहीं, परन्तु उन कषायों का त्याग एवं क्षमादि गुणों की प्राप्ति अपने आप कर पाना संभव नहीं है। गुणसंपन्न गुरु भगवंत के प्रति बहुमान से ही ऐसे गुण प्रगट हो सकते हैं । गुरु 2. योगशास्त्र की वृत्ति में गुरुवंदन का खास अर्थ करते हुए बताया है कि,
'वन्दनं वन्दनयोग्यानां धर्माचार्याणां पच्चविंशत्यावश्यकविशुद्धं द्वात्रिंशद्दोषरहितं नमस्करणम्' वन्दन अर्थात् वंदन के योग्य धर्माचार्यो को २५ आवश्यकों से विशुद्ध एवं ३२ दोषों से रहित किया हुआ नमस्कार उसमें २५ आवश्यक की गणना इस तरीके से करते हैं - "दो ओणयं अहाजायं किइकम्मंबारसावयं । चउसिरंतिगुत्तं च दुपवेसं एगनिक्खमणं ।।"
- आवश्यकनियुक्ति. १२०२ (२) दो अवनत, (३) एक यथाजात मुद्रा, (१५) बारह आवर्त (१९) चार शिरोनमन (२२) तीन गुप्ति (२४) दो प्रवेश (२५) एक निष्क्रमण जो ३२ दोष गुरु को वंदन करते समय टालने योग्य हैं, वे निम्नलिखित हैं : १. आदरहीन होना, २. अकडाई रखना, ३. अधीर होना, ४. सूत्रों का गलत उच्चारण करना ५. कूहकर वंदन करना, ६. जबरदस्ती वंदन करना, ७. आगे-पीछे हलन-चलन करना, ८. वंदन करते समय फिरते रहना (जल मे मछली की तरह) ९. मन में द्वेष रखकर वंदन करना, . दो हाथ घुटने के बाहर रखकर वंदन करना, ११. भय से वंदन करना, १२. 'अन्य भी मुझे वंदन करेंगे, इसलिए मैं वंदन करूं' ऐसी बुद्धि से वंदन करना १३. मैत्री की इच्छा से बंदन करना, १४. होशियारी बताने के लिए वंदन करना, १५. स्वार्थ बुद्धि से वंदन करना, १६. चोरी-छुपी से वंदन करना, १७. अयोग्य समय पर वंदन करना, १८. क्रोध से वंदन करना १९. चुपके से वंदन करना, २०. खुश रखने के लिए वंदन करना