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________________ ११२ गुरु गुरु गुरु :- (एवं) :- (एवम्) :- ( ऐसा ही है) सूत्रसंवेदना - ३ ६- अपराध क्षमापना स्थान शिष्य :- खमासमणो ! देवसियं वइक्कमं खामेमि शिष्य :क्षमाश्रमण ! दैवसिकं व्यतिक्रमं क्षमयामि शिष्य :- हे क्षमाश्रमण ! मुझ से दिन भर में कोई अपराध हुआ हो उसकी मैं क्षमा माँगता हूँ । गुरु : ( अहमवि खामेमि तुमं) गुरु : (अहमपि क्षामयामि त्वाम्) गुरु :- ( मैं भी तुम्हें खमाता हूँ) शिष्य :- आवस्सिआए पडिक्कमामि । शिष्य :- आवश्यक्या प्रतिक्रामामि । शिष्य :- (चरण-करण योगरुप ) आवश्यकी से जो विपरीत हुआ हो उसका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ । शिष्य :- खमासमणाणं देवसिआए तित्तीसन्नयराए आसायणाए, शिष्य :- क्षमाश्रमणानां देवसिक्या त्रयस्त्रिंशदन्यतरया आशातनया, शिष्य :- (आप) क्षमाश्रमण संबंधी दिवस में हुई तैंतीस में से किसी भी आशातना से (लगे हुए पाप का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ।) जं किंचि मिच्छाए; मण-दुक्कडाए, वयय-दुक्कडाए, काय-दुक्कडाए; कोहाए, माणाए, मायाए, लोभाए; सव्वकालिआए, सव्वमिच्छोवयाराए, सव्वधम्माइक्कमणाए आसायणाए मे जो अमारो कओ, तस्स खमासमणो ! पक्किमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥ ७ ॥
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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