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गुरु
गुरु
गुरु
:- (एवं)
:- (एवम्)
:- ( ऐसा ही है)
सूत्रसंवेदना - ३
६- अपराध क्षमापना स्थान
शिष्य :- खमासमणो ! देवसियं वइक्कमं खामेमि शिष्य :क्षमाश्रमण ! दैवसिकं व्यतिक्रमं क्षमयामि
शिष्य :- हे क्षमाश्रमण ! मुझ से दिन भर में कोई अपराध हुआ हो
उसकी मैं क्षमा माँगता हूँ ।
गुरु :
( अहमवि खामेमि तुमं)
गुरु
:
(अहमपि क्षामयामि त्वाम्)
गुरु :- ( मैं भी तुम्हें खमाता हूँ)
शिष्य :- आवस्सिआए पडिक्कमामि ।
शिष्य :- आवश्यक्या प्रतिक्रामामि ।
शिष्य :- (चरण-करण योगरुप ) आवश्यकी से जो विपरीत हुआ हो उसका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ।
शिष्य :- खमासमणाणं देवसिआए तित्तीसन्नयराए आसायणाए, शिष्य :- क्षमाश्रमणानां देवसिक्या त्रयस्त्रिंशदन्यतरया आशातनया,
शिष्य :- (आप) क्षमाश्रमण संबंधी दिवस में हुई तैंतीस में से किसी भी आशातना से (लगे हुए पाप का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ।)
जं किंचि मिच्छाए; मण-दुक्कडाए, वयय-दुक्कडाए, काय-दुक्कडाए; कोहाए, माणाए, मायाए, लोभाए;
सव्वकालिआए, सव्वमिच्छोवयाराए, सव्वधम्माइक्कमणाए आसायणाए मे जो अमारो कओ, तस्स खमासमणो !
पक्किमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥ ७ ॥