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________________ १११ सुगुरु वंदन सूत्र शिष्य :- पाप व्यापार का त्याग करता हूँ । आप के चरणों को (मेरी) काया द्वारा स्पर्श करता हूँ । हे भगवंत ! (उससे) कोई ग्लानि हो (तो) आप (मुझे) क्षमा करें । ३-अव्याबाध पृच्छा स्थान शिष्य :- अप्पकिलंताणं भे ! दिवसो बहुसुभेण वइक्वंतो ? शिष्य :- अल्पक्लान्तानां भवतां ! दिवसः बहुशुभेन व्यतिक्रान्तः ? शिष्य :- अल्प क्लेशवाले आप का दिन बहुत सुखपूर्वक व्यतीत हुआ? गुरु :- (तहत्ति) गुरु :- (तथेति) गुरु :- (वैसा ही है अर्थात् जिस प्रकार तु कहता है, उसी प्रकार मेरा दिन व्यतीत हुआ है ।) ४- संयम यात्रा पृच्छा स्थान शिष्य :- भे जत्ता ? शिष्य :- भवताम् यात्रा ? शिष्य :- आप की संयम यात्रा ठीक तरह से चल रही है न ? गुरु :- (तुब्भं पि वट्टए ?) . गुरु :- (तवापि वर्तते ?) गुरु :- (मेरी यात्रा तो ठीक चल रही है, तुम्हारी संयम यात्रा भी ठीक चल रही है ना ?) ५-यापना पृच्छा शिष्य :- भे च जवणिजं ? शिष्य :- भवताम् च यापनीयम् ? शिष्य :- आपकी इन्द्रियाँ एवं नोइन्द्रियाँ (मन) पीडा रहित होकर उपशम भाव में रहते हैं ?
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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