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सूत्रसंवेदना-३
आसायणाए जो मे अइआरो कओ, तस्स खमासमणो ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ।।
पद-५८ गुरु अक्षर-२५, लघु अक्षर-२०१ कुल अक्षर-२२६ अन्वय,संस्कृत छाया सहित शब्दार्थः ।
१-इच्छा निवेदन स्थान शिष्य :- खमासमणो ! जावणिजाए निसीहिआए वंदिउं इच्छामि । शिष्य :- क्षमाश्रमण ! यापनीयया नैषेधिक्या वन्दितुं इच्छामि । शिष्य :- हे क्षमाश्रमण ! मैं यापनिका द्वारा एवं नैषेधिकी द्वारा वंदन
करना चाहता हूँ । गुरु :- (छन्देणं) अथवा (पडिक्खह/तिविहेणं) गुरु :- (छन्देन) अथवा (प्रतीक्षध्वम् / त्रिविधेन) गुरु :- (इच्छा हो वैसा कर) अथवा (प्रतीक्षा कर/त्रिविध से वंदन
करने का अभी प्रतिषेध करता हूँ ।)
२-अनुपाज्ञापन स्थान शिष्य :- मे मिउग्गहं अणुजाणह । शिष्य :- मम मितावग्रहम् अनुजानीत । शिष्य :- मुझे मितावग्रह में प्रवेश करने की अनुज्ञा प्रदान करे । गुरु :- (अणुजाणामि) गुरु :- (अनुजानामि) गुरु :- (मैं तुझे अनुज्ञा देता हूँ ।) वसति में प्रवेश करते हुए जैसे 'निसीहि' कहते हैं, वैसे अनुज्ञा पाकर यहाँ भी अवग्रह में प्रवेश करते हुए ‘निसीहि' कहते हैं । शिष्य :-, निसीहि, अहोकायं काय-संफासं भे ! किलामो खमणिज्जो शिष्य :- नैषेधिकी, अधःकायं काय-संस्पर्श (करोमि । कायेन संस्पृशामि),
भवद्भिः क्लमः क्षमणीयः