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सुगुरु वंदन सूत्र
सूत्र परिचय:
इस सूत्र द्वारा सुगुरु को वंदन किया जाता है, इसलिए इसका नाम 'सुगुरु वंदन सूत्र' है । बिना कप्तान जैसे जहाज समुद्र पार नहीं कर सकता वैसे ही बिना सद्गुरु, हम भयंकर भवसागर पार नहीं कर सकते । सुगुरु के बिना
अज्ञान के अंधकार को भेदकर ज्ञान का प्रकाश प्राप्त नहीं हो सकता, ज्ञान के बिना चारित्र का पालन नहीं हो सकता एवं चारित्र के पालन के बिना मोक्ष नहीं मिलता । इसी कारण से मोक्षार्थी आत्मा को सुगुरु का शरण स्वीकार करके, उनकी प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए विधिपूर्वक वंदनादि करना चाहिए ।
इस सूत्र में विधिपूर्वक वंदन के लिए छः स्थान खूब सुंदर तरीके से बताए हैं।
१. विनयी शिष्य सर्वप्रथम सुगुरु के समक्ष वंदन करने की अपनी इच्छा व्यक्त करता है, वह 'इच्छानिवेदन' नामक पहला स्थान है ।
२. शिष्य की इच्छा जानने के बाद, योग्य अवसर हो तो शिष्य की निर्जरा के अभिलाषी गुरु भगवंत शिष्य को वंदन करने की अनुज्ञा देते हैं, वह 'अनुज्ञापन' नामक दूसरा स्थान है ।
३. गुरु की आज्ञा प्राप्त करने के बाद शिष्य अपना मस्तक झुकाकर तीन