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सूत्रसंवेदना-३
शुक्लध्यान : बार बार किया हुआ धर्मध्यान57 शुक्लध्यान प्राप्त करवाता है । उसके भी चार प्रकार हैं : १. पृथक्त्व-सवितर्क-सविचार :
शुक्लध्यान के प्रथम अवस्थान/सोपान (पाये) का नाम तीन शब्दों से बना है : पृथक्त्व, सवितर्क एवं सविचार । उनमें - पृथक्त्व अर्थात् अलगाव, वैविध्य । यह ध्यान कोई भी एक द्रव्य के अलग अलग पर्यायों - जैसे कि उसकी उत्पत्ति, स्थिति, नाश, मूर्तत्व वगैरह विषयक होता है । इसके अलावा यह ध्यान अलग अलग पर्यायों संबंधी अलग अलग नय के विविध विषयों पर विचारवाला होता है, इसलिए उसे पृथक्त्व कहते हैं । • वितर्क अर्थात् श्रुत । यह ध्यान द्वादशांगी रूप श्रुत के आधार पर होता है।
इसलिए उसे सवितर्क कहते हैं एवं वह चौदहपूर्वी को ही संभव है ।। • विचार अर्थात् विचरण अथवा संक्रमण (transmission). यह ध्यान कभी शब्द के आधार पर होता है तो कभी अर्थ के आधार पर होता है । इसके अलावा वह कभी मनोयोग से होता है, तो कभी काययोग से, तो कभी वचन योग से होता है अथवा तीनों योग से भी होता है । इस प्रकार इस ध्यान में शब्द से अर्थ में या एक योग से दूसरे योग में विचरण चालू रहता है । अतः इसे सविचार कहा गया है । संक्षेप में श्रेणिवंत मुनियों को ८ से १२वें गुणस्थान तक, पूर्वगत श्रुत के अनुसार एक ही द्रव्य के भिन्न भिन्न पर्यायों का शब्द-अर्थ के योग की संक्रान्तिवाला प्रथम शुक्ल ध्यान होता है । २. एकत्व-सवितर्क-अविचार :
शुक्ल ध्यान के दूसरे अवस्थान/सोपान (पाये) का नाम भी तीन शब्दों से बना है : एकत्व, सवितर्क एवं अविचार, उनमें - 57. योगशास्त्र प्रकाश ११ गाथा ६, ७, ८, ९