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________________ 10 हुआ। विविध समाधानों को मिलाकर लेखन पूर्ण किया। पुस्तक का साद्यंत लेखन होने के बाद उसमें आलेखित पदार्थों की शास्त्रानुसारीता शोध के लिए सन्मार्ग दर्शक प.पू.आचार्यदेव श्रीमद् विजय कीर्तियशसूरीश्वरजी महाराज को बिनति की। अनेकविध शासन रक्षा एवं प्रभावना के कार्य में व्यस्त होने के कारण वे यह कार्य शीघ्र हाथ में न ले सके, परन्तु आखिर में विहार के दौरान हुए गमगीन अकस्मात के बाद अत्यंत प्रतिकूल शारीरिक परिस्थिति के बीच भी उन्होंने शब्दशः लेखनी परख डाली एवं सुधार-वृद्धि के साथ बहुत सी जगह नई दिशा का दर्शन कराया। परार्थ परायण पन्यासप्रवर प.पू.भव्यदर्शनविजयजी म.सा.ने इसके पहले सूत्र संवेदना भाग-२ देखकर दिया था, जिसके कारण बहुत सारी भाषाकीय भूलें सुधरी एवं पदार्थ की सचोटता भी आ सकी । जिससे यह भाग भी वे देख लें ऐसी मेरी अंतर की भावना थी। आपश्रीने मेरी भावना सहर्ष स्वीकार कर पूरा लेखन सूक्ष्मता से जाँच दिया। अस्वस्थ तबियत में भी प.पू.रोहिताश्रीजी म.सा. के समुदाय की पू.चंदनबालाजी म.सा. ने भी मुझे बहुत बार प्रेरणा एवं प्रूफ रीडिंग के कार्य में प्रशंसनीय सहायता की है। विशिष्ट क्षयोपशम वाले व्यक्ति के लिए लिखने का कार्य बहुत सरल होता है। वे तो लिखने बैठते हैं और सुंदर लेख लिख सकते हैं, परन्तु क्षयोपशम के अभाव के कारण मेरे लिए यह कार्य आसान नहीं था। अंतर में भावों का झरना तो सतत फूटता रहता है। परन्तु मेरे भाषाकीय ज्ञान की मर्यादा के कारण इन भावों को शब्दों में ढालने का काम बहुत मुश्किल था, फिर भी जिज्ञासु साध्वीजी भगवंतों की सहायता से एवं भावुक बहनों की सतत मांग से यथाशक्ति लिखने का प्रयास किया है। पूर्व में मैं बता चुकी हूँ कि, इस पुस्तक में बताए गये भाव पूर्ण नहीं है। गणधर रचित सूत्र के अनंत भावों को समझने की भी मेरी शक्ति नहीं, तो लिखने की तो क्या बात करूँ! तो भी शास्त्र के सहारे मैं जितने भावों को
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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