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________________ ९० सूत्रसंवेदना - ३ 50 शास्त्रकारों ने विनय के पाँच प्रकार का वर्णन किया हैं । १. ज्ञानविनय - बहुमानपूर्वक वाचना, पृच्छना आदि स्वाध्याय करके ज्ञान प्राप्त करना तथा ज्ञान, ज्ञानी एवं ज्ञान के साधनों के प्रति हार्दिक बहुमान भाव धारण करना ज्ञानविनय कहलाता है । २. दर्शन विनय - भगवान के द्वारा बतलाए गए जीव, अजीवादि तत्त्वों के प्रति श्रद्धा रखना एवं तत्त्व में शंका वगैरह टालना दर्शन विनय है । ३. चारित्र विनय - चारित्र की श्रद्धा करना, भगवान ने बताए हुए संयम के प्रति आदर रखना, यथाशक्ति उसका पालन करना एवं अन्यों के समक्ष उसकी सुंदर प्ररूपणा करना चारित्र विनय है । ४. तप विनय - भगवान के कहे हुए बारह प्रकार के तप में आदर एवं बहुमान रखना एवं शक्ति के अनुसार उनका आदर करना तप विनय है । [कुछ ग्रंथों में तप विनय अलग नहीं बताया गया है, उसका समावेश चारित्र विनय में ही कर दिया गया है ।] ५. उपचार विनय - आचार्य वगैरह को देखते ही खड़े हो जाना, सामने लेने जाना, हाथ जोड़ना उनकी गैरहाजरी में भी काया, वाणी एवं मन उनको समर्पित करना, उनका गुणानुवाद करना, उनका स्मरण करना वगैरह उपचार विनय कहलाता है । दशवैकालिक की वृत्ति में मन, वचन एवं काया से विनय के तीन प्रकारों को इसके साथ जोड़कर विजय के कुल सात भेद बताए हैं । इसके अतिरिक्त शास्त्र में निम्नोक्त १४ प्रकार के विनय बताए हैं : 50. तत्र सबहुमानं ज्ञानग्रहणाभ्यासस्मरणादि ज्ञानविनयः सामायिकादिके सकलेऽपि श्रुते भगवत्प्रकाशितपदार्थान्यथात्वासम्भवात्तत्त्वार्थश्रद्धानिः शङ्कितत्वादिना दर्शनविनयः चारित्रस्य श्रद्धानं सत्यगाराधनमन्येभ्यश्च तत्प्ररूपणादिश्चारित्रविनयः, प्रत्यक्षेष्वाचार्यादिष्वभ्युत्थानाभिगमनाञ्जलिकरणादिः परोक्षेष्वपि कायवाग्मनोभिरञ्जलिक्रियागुणकीर्त्तनानु स्मरणादिश्चोपचारविनयः । आचार प्रदीप
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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