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नाणंमि दंसणम्मि सूत्र
छः प्रकार के बाह्य तप अभ्यंतर तप के लिए परम उपकारक हैं । इसलिए अभ्यंतर तप द्वारा आत्मशुद्धि के इच्छुक सर्व मुमुक्षुओं को इन सभी तप में विशेष यत्न करना चाहिए ।
इस गाथा का उच्चारण करते हुए साधक सोचता है,
" अनादिकालीन आहार की आसक्ति एवं शरीर की ममता को तोड़ने के लिए प्रभु ने बाह्य तप रूप सुन्दरें तपाचार दर्शाया है । उनके सहारे मैं इच्छाओं के उपर अंकुश रखकर मन एवं इन्द्रियों को स्वस्थ बना सकता हूँ । तपाचार की आराधना के लिए ऐसा अच्छा अवसर प्राप्त होने पर भी आहारादि की आसक्ति के कारण मैंने उनका यथायोग्य पालन नहीं किया, कभी किया भी है, तो मात्र बाह्य रूप से किया है, कर्मनिर्जरा के हेतु से नहीं किया । आज अभी संकल्प करता हूँ कि यथाशक्ति तपाचार की आराधना करके, तप गुण का विकास कर, अपने कर्मों का नाश करूँगा ।"
अवतरणिका :
छट्ठी गाथा में छः प्रकार के बाह्य तप रूप तपाचार का वर्णन किया । अब आभ्यंतर तप रूप तपाचार का वर्णन करते हैं ।
गाथा :
पायच्छित्तं विणओ, वेयावचं तहेव सज्झाओ ।
झाणं उस्सग्गो विअ, अब्भितरओ तवो होइ ।। ७ ।।
अन्वय सहित संस्कृत छाया :
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प्रायश्चित्तं विनयः, वैयावृत्त्यं तथैव स्वाध्यायः ।
ध्यानं उत्सर्ग अपि च, आभ्यन्तरं तपो भवति ।।७।।