________________
७२
सूत्र संवेदना - २ १. ऐश्वर्य : ऐश्वर्य अर्थात् सर्वश्रेष्ठ ठकुराई । इस जगत् में सर्वश्रेष्ठ ठकुराई अरिहंत परमात्मा की है; क्योंकि दुन्यवी दृष्टि से उच्च कोटि के भौतिक सुख एवं तीर्थंकर नामकर्म के उदय से प्राप्त हुए ३४ अतिशयों के वे स्वामी हैं । उनके गुणों से आकर्षित हुए देव, देवेन्द्र एवं नरेन्द्र भी उनके सेवक बनकर रहते हैं एवं उनकी अनेक प्रकार की भक्ति करते हैं । केवलज्ञान होते ही इन्द्रादि देव, अष्ट महाप्रातिहार्य की शोभा करते हैं । परमात्मा जहाँ पैर रखते हैं, वहाँ मक्खन जैसे कोमल नौ सुवर्ण कमल की रचना करते हैं । ऐसे अनेक प्रकार के परमात्मा के ऐश्वर्य उनके आंतरिक गुणों के द्योतक होने से अनेकों के लिए धर्मप्राप्ति का कारण बनते हैं, उनका यह बाह्य ऐश्वर्य भी योग का प्रभाव है ।
२. रूप : प्रभु का रूप अति सुंदर एवं अनुपम कोटि का होता है । जगत् में ऐसा रूप किसी और का नहीं होता कि जिसकी उपमा द्वारा भगवान के रूप की आंशिक तुलना भी की जा सके, तो भी उनके रूप का वर्णन करने के लिए महापुरुषों ने लिखा है कि सब देव, दैविक शक्ति से अपना पूरा सौन्दर्य एक अंगूठे में एकत्रित कर लें एवं उस अंगूठे को भगवान के रूप के सामने रखें, तो वह अंगूठा भगवान के रूप के सामने कोयले जैसा लगेगा14 । इसलिए एक कवि ने गाया है - "देखो माई अजब रूप जिनजी को;
उनके आगे और सबहु को, रूप लगे मोहे फ़ीको... देखो..." “कोडी देव मिलके कर सके, एक अंगूठ रूप प्रतिछंद ऐसो अद्भुत रूप तिहारो, बरसत मानु अमृत के बुंद
जय जय पास जिणंद" 14. आवश्यक नियुक्ति में कहा गया है कि आपकी अद्भुत शक्ति से सर्व देवताओं मिलने के एक
अंगुष्ठ प्रमाणरूप विकुर्वे ओर रूप के भगवंत का अंगुठा की तुलना में रखने में आये वे देवनिर्मित अंगुठा की स्थिति हुवे उसी सूर्य की सामने अंगारा की ! सव्वसुरा जइ रुवं अंगुठ्ठपमाणयं विउव्वेज्जा । जिणपादंगुटुं पइ न सोहए तं जहिंगालो ।।५६६।।
- आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीय टीका