SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नमोत्थुणं सूत्र . ७१ 'अरुहंताणं' अर्थात् कर्मों का सर्वथा नाश होने के कारण जिनका पुर्नजन्म नहीं होता, वैसे अरिहंत भगवंतों को नमस्कार हों । । यह पद बोलते हुए रागादि शत्रुओं का नाश करनेवाले, जन्म की परंपरा को छेदनेवाले, सबके लिए पूज्य ऐसे अरिहंत परमात्मा को अंतःकरण में बिराजित करके, नमस्कार करते हुए प्रार्थना करनी चाहिए - “हे नाथ ! रागादि शत्रुओं से पीड़ित होने से, मेरी जन्म-मरण की • तथा दुःखो की परंपरा चालू रहती है। आपको नमस्कार करते हुए एक ही प्रार्थना करता हूँ कि प्रभु ! रागादि भावों से छुडाकर मुझे भी अपने जैसा सुखी बनाइएँ ।” अरिहंत परमात्मा के नाम, स्थापना, द्रव्य एवं भावः ये चारों निक्षेप जगत् के जीवों को पवित्र करने में समर्थ होने से पूजनीय हैं, तो भी इन चारों निक्षेपों में भाव निक्षेप प्रधान है; क्योंकि भाव अरिहंत के स्मरणपूर्वक ग्रहण किया हुआ अरिहंत का नाम, अरिहंत की प्रतिमा या अरिहंत की कोई भी द्रव्य अवस्था को किया हुआ नमस्कार ही सविशेष कल्याण का कारण बनता है, इसलिए अब भाव-अरिहंत को व्यक्त करनेवाला भगवंताणं पद कहते हैं - भगवंताणं (नमोऽत्थुणं) - भगवंतों को (नमस्कार हो) 'भग'13 शब्द के ऐश्वर्य, रूप, यश, लक्ष्मी, धर्म एवं प्रयत्न ऐसे छ: महत्त्वपूर्ण अर्थ होते हैं । 'वंत' शब्द का अर्थ 'वाला' होता है । ऐश्वर्यादि छ: गुणों वाले भगवान होते हैं, उन्हें मेरा नमस्कार हो । 12.नामाकृति-द्रव्यभावैः पुनतस्त्रिजगज्जनम् । - श्री सकलाऽर्हत् स्तोत्र 13. भग' - भगोऽर्कज्ञान-माहात्म्य-यशः-वैराग्य-मुक्तिषु। रूप-वीर्य-प्रयत्नेच्छा-श्रीधर्मेश्वर-योनिषु । 'भग' शब्द सूर्य, ज्ञान, माहात्म्य, यश, वैराग्य, मुक्ति, रूप, वीर्य, प्रयत्न, इच्छा, लक्ष्मी, धर्म, ईश्वर और योनि अर्थ में प्रयुक्त होता है । इन चौदह अर्थों में से सूर्य और योनि-इन दो को छोड़कर १२ अर्थ भगवान में विद्यमान हैं, परन्तु यहाँ मात्र महत्त्वपूर्ण छ अर्थों का विवेचन किया गया है। 'भगवद्भ्य' इति । तत्र भग समग्रैश्वर्यादिलक्षणः । उक्तं च - “ऐश्वर्यस्य समग्रस्य रूपस्य यशसः श्रियः । धर्मस्याथ प्रयत्नस्य, षण्णां भग इतीङ्गना ।।" - श्री ललित विस्तरा
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy