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नमोत्थुणं सूत्र
__ तृप्ति : सामान्यतया सोचने से ऐसा लगता है कि, यह बात सच है, परन्तु गहराई से सोचें तो ख्याल आता है कि, भगवान की आज्ञा के पालनरूप भाव नमस्कार भी उत्कर्ष-अपकर्ष आदि अनेक भेदवाला है शास्त्रकारों ने उसके मुख्य तीन भेद बताए हैं : 'इच्छायोग शास्त्रयोग, सामर्थ्ययोग । जब तक सामर्थ्य योग का सर्वश्रेष्ठ नमस्कार न हो, तब तक साधक अपनी भूमिका से ऊपर ऊपर के नमस्कार की प्रार्थना करें, तो वह अनुचित नहीं है । सामर्थ्य योग का भाव नमस्कार तत्काल वीतराग रूप फल देता है । इसलिए वीतराग रूप फल की प्राप्ति न हो, तब तक गणधर भगवंत या मुनि भगवंत भी बार बार इस प्रकार प्रार्थना करते हैं, यह उचित ही है । 9. भावों की भिन्नता के कारण एक ही धर्मक्रिया के अनेक प्रकार हो सकते हैं । इन अनेक प्रकारों का संग्रह
शास्त्रकारों ने इच्छायोग, शास्त्रयोग एवं सामर्थ्य योग : तीन योग में किया है। इच्छायोगः कर्तुमिच्छोः श्रुतार्थस्य ज्ञानिनोऽपि प्रमादतः । विकलो धर्मयोगो यः स इच्छायोग उच्यते ।।३।। शास्त्रयोगः शास्त्रयोगस्त्विह ज्ञेयो, यथाशक्त्यप्रमादिनः । श्राद्धस्य तीव्र बोधेन वचसाऽविकलस्तथा ।।४।। सामर्थ्ययोगः शास्त्रसन्दर्शितोपायस्तदतिक्रान्तगोचरः । शक्त्युरेकाद्विशेषेण, सामर्थ्याख्योऽयमुत्तमः ।।५।।
- श्री योगदृष्टि समुच्चय । १. इच्छायोग : धर्म करने की इच्छा तीव्र हो, क्रिया संबंधी शास्त्रज्ञान भी हो, फिर भी प्रमादादि दोषों के कारण शास्त्र में जिस प्रकार से धर्मक्रिया करने को कहा गया है, पूर्णतया उसी प्रकार से न कर सके, परन्तु धर्मक्रिया में किसी अंग की विकलता रहे, तो वैसी धर्म क्रिया को इच्छायोग की क्रिया कहते हैं। २.शास्त्रयोगः शास्त्र वचन के अत्यंत बोधवाली एवं मोहनीय कर्म के नाश से विशिष्ट कोटि की श्रद्धा जिसमें प्रगट हुई हो, वैसी आत्मा अपनी शक्ति के अनुरूप प्रमादादि भावों को त्याग करके शास्त्र में जो धर्मक्रिया जिस तरीके से करने को कही है, उसी प्रकार से किसी भी अंग की विकलता के बिना धर्मक्रिया कर सकती है । उनकी ऐसी शास्त्रानुसारी धर्मक्रिया को शास्त्रयोग की क्रिया कहते हैं। ३. सामर्थ्ययोग : मोक्ष का मार्ग अतीन्द्रिय है । इस मार्ग का ज्ञान, शास्त्र से भी मर्यादित मात्रा में ही होता है । आत्मशक्ति की जब प्रबलता होती है अर्थात् आत्मा की तीव्र शक्ति जब प्रकट होती है, तब अनुभव ज्ञान होता है । इस अनुभव ज्ञान द्वारा शास्त्र में बताए हुए मार्ग से आगे का मार्ग दिखाई देता है । उस मार्ग पर विशिष्ट प्रकार के वीर्य के प्रवर्तन द्वारा घाति कर्मों का नाश करके आत्मा केवलज्ञान को प्राप्त करती है । विशिष्ट प्रकार के वीर्य प्रवर्तन की यह क्रिया सामर्थ्य योग की क्रिया कहलाती है।