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सूत्र संवेदना - २ 'नमो' शब्द का प्रयोग ‘पूजा' अर्थ में भी होता है । पूजा अर्थात् गुणवान व्यक्ति के प्रति अंतर में प्रकटे हुए बहुमान को व्यक्त करने की क्रिया ।
किसी व्यक्ति के प्रति आदर होने पर सर्वप्रथम उसका बहुमान करने के लिए उसके ऊपर फूल आदि बरसाये जाते हैं या उसको फूल आदि की भेंट देकर उसका सत्कार किया जाता है । उससे अधिक बहमान करना हो, तो उसे मेवा-मिठाई-अलंकार आदि अर्पण किए जाते हैं । उससे भी अधिक बहुमान होने पर उसकी प्रशंसा करने का मन होता है एवं आगे बढ़कर बहुमान के कारण वह व्यक्ति जो कहे वह करने का मन होता है । इन सब बहुमान की वृद्धि के साथ जुड़ी हुई विविध क्रियाओं को शास्त्रकारों ने चार प्रकार की पूजा में विभाजित किया है, वे इस प्रकार हैं :पूजा के चार प्रकार:
१. पुष्पपूजा, २. आमिषपूजा, ३. स्तोत्रपूजा, ४. प्रतिपत्तिपूजा अथवा १. अंगपूजा, २. अग्रपूजा, ३. भाव पूजा, ४. प्रतिपत्तिपूजा ।। ___ १. पुष्पपूजा :- ताजे, सुगंधित, अखंड पुष्पों से परमात्मा की भक्ति करना, पुष्पपूजा है । पुष्प के उपलक्षण से हरेक प्रकार की अंगपूजा का समावेश इसमें हो सकता है ।
२. आमिषपूजा :- भोग्य वस्तु से की हुई भगवान की भक्ति आमिष पूजा कहलाती है । केसर, चंदन, बरास, सुवर्ण, रजत, मणि, माणिक्य, धूप, दीप, अलंकार, अक्षत, फल, नैवेद्य, गीत, नृत्य, वाजिंत्र आदि विविध तरीके से की गई अरिहंत की भक्ति आमिषपूजा है । आमिष के उपलक्षण से सब अग्रपूजा का समावेश इसमें हो सकता है ।
२. अंग पूजा : प्रभु की प्रतिमा को स्पर्श करके जल, केसर, बरास आदि से जो पूजा की जाती है, उसे अंग ___ पूजा कहते हैं । पुष्प पूजा एवं धूप पूजा का समावेश इस अंग पूजा में होता है (धर्मसंग्रह के अनुसार) 3. अग्र पूजा : प्रभुप्रतिमा के सन्मुख खडे रहकर दीपक, अक्षत, नैवेद्य आदि से पूजा करना वह अग्रपूजा
कहलाती है । आमिरपूजा का समावेश इसमें होता है। 4. भाव पूजा ः प्रभु के सन्मुख स्तुति, स्तवन, स्तोत्रादि बोलने पूर्वक जो भक्ति की जाती है, वह भाव पूजा
कहलाती है । स्तोत्र पूजा का समावेश इसमें हो सकता है ।