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________________ नमोत्थुणं सूत्र सव्वन्नूणं, सव्व-दरिसीणं, सिव-मयल-मरुअ- -मणंत मक्खय-मव्वाबाहमपुणरावित्ति सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं, जिणाणं जिअ - भयाणं नमो ।।९।। सर्वज्ञेभ्यः सर्वदर्शिभ्यः शिवम् अचलम् अरुजम् अनन्तम् अक्षयम् अव्याबाधम् अपुनरावृत्ति- सिद्धिगतिनामधेयं स्थानं संप्राप्तेभ्यः जिनेभ्यः जित - भयेभ्यः नमः ।। ९ ।। सर्वज्ञों को, सर्वदर्शियों को, विघ्न उपद्रवों से रहित, अचल, वेदना (रोग) रहित, अनंत, अक्षय, पीडा रहित, जहाँ जाने के बाद पुनः आगमन नहीं होता, वैसी सिद्धिगति नाम वाले स्थान को प्राप्त किए हुए जिनों को, सात प्रकार के भय जीतनेवालों को नमस्कार हो । जे अ अईआ सिद्धा, जे अ णागए काले भविस्संति । संपइ अ वट्टमाणा, सव्वे तिविहेण वंदामि । । १० ।। ६५ ये च अतीताः सिद्धाः, ये च अनागते काले भविष्यन्ति । सम्प्रति च वर्तमानाः, सर्वान् त्रिविधेन वन्दे ।।१०।। इसके अतिरिक्त जो भूतकाल में सिद्ध हो गए हैं एवं जो भविष्य काल में सिद्ध होंगे एवं जो वर्तमान में विद्यमान हैं, उन सबको मन-वचन-काया- इन तीनों प्रकार से मैं नमन करता हूँ । विशेषार्थ : यह सूत्र भगवान की स्तवनास्वरूप है । स्तवना करने से पहले बुद्धिमान को यह प्रश्न होता है कि स्तुति करने योग्य कौन है ? उसके उत्तर में स्तुति करने योग्य अरिहंत भगवान हैं, वह बताने के लिए प्रथम दो पदों की पहली " स्तोतव्य संपदा" बताई गई है । नमोत्थुणं (अरिहंताणं) - (अरिहंतों को ) नमस्कार हो । I इस वाक्य में कुल चार शब्द हैं- नमोऽत्यु, णं एवं अरिहंताणं । उसमें प्रथम "नमो' शब्द का साधरण अर्थ है - नमस्कार । नमस्करणीय ऐसे अरिहंत भगवंतों के गुणों को याद करके, उन गुणों को प्राप्त करने के लिए मन, वचन, काया का प्रयत्न करना ही वास्तविक नमस्कार है । 1. 'नमो' शब्द का विस्तृत अर्थ सूत्र संवेदना भाग-१ के प्रथम सूत्र के प्रथम पद में देखें । 'पुष्पामिषस्तोत्रप्रतिपत्तिपूजानां यथोत्तरं प्राधान्यं' प्रतिपत्तिश्च वीतरागे, पूजार्थं च नम इति । पूजा च द्रव्यभावसङ्कोच इत्युक्तम् । - ललितविस्तरा
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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