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सूत्र
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संवेदना
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इस सूत्र के एक-एक पद अनंतगम - पर्याय से अर्थात् अनंत अर्थ से युक्त है । इसमें ९ संपदाएँ हैं । इन संपदाओं के नाम, उनके क्रम और उनका प्रयोजन भी विशिष्ट है । इन सबका बोध होने से विचारकों के लिए इस सूत्र का उच्चारण चिंतन - मनन आदि अत्यंत आनंदप्रद बनता है ।
इसमें सर्वप्रथम 'नमोऽत्थुणं' आदि तीन पदों की 'स्तोतव्य' संपदा बताई गई है । विचारक पुरुष हमेशा विषय की जानकारी प्राप्त करने के बाद ही उसमें प्रवृत्ति करते हैं, इसलिए स्तुति का प्रारंभ करने से पहले स्तुति करने योग्य 'कौन है', वह इस संपदा में बताया है ।
उसके बाद ‘आइगराणं' आदि तीन पदों की दूसरी 'प्रधान साधारणअसाधारण-हेतु' संपदा बताई गई है । अरिहंत भगवंत ही स्तुतिपात्र हैं, यह जानने के बाद बुद्धिमान पुरुष को प्रश्न उठता है कि, इस जगत् में इच्छित पूर्ण करनेवाले देव तो अनेक हैं, फिर भी अरिहंत भगवंतों की ही स्तुति क्यों करनी चाहिए ? इस जिज्ञासा की तृप्ति के लिए स्तोत्रकार ने यह प्रभु ही स्तुति करने योग्य क्यों है, इसके साधारण ( सब में उपलब्ध) तथा असाधारण ( मात्र तीर्थंकर में ही उपलब्ध) कारण बताएँ हैं ।
उसके बाद 'पुरिसुत्तमाणं' आदि चार पदों की तीसरी 'असाधारण हेतु संपदा' बताई गई है । सामान्य से स्तुति के कारण जानने के बाद भी प्रज्ञावान पुरुष को प्रश्न उपस्थित होता है, कि प्रभु प्रथम से अंत तक कैसे थे ? इसके उत्तर में निगोद से लेकर अंतिम भव तक प्रभु की आत्मा कैसी विशिष्ट थी, वह इस संपदा द्वारा वर्णन किया गया है ।
उसके बाद 'लोगुत्तमाणं' आदि पाँच पदों की चौथी (स्तोतव्य संपदा की ही) 'सामान्य उपयोग संपदा' बताई गई है । इतना जानने के बाद भी प्रेक्षावान् को प्रश्न होता है कि, अरिहंत भगवंत जगत में सर्वश्रेष्ठ होने पर भी उनसे हमें क्या फायदा ? इसका उत्तर इन पदों द्वारा दिया गया है ।
पुनः विद्वान को प्रश्न उठता है कि अरिहंत भगवंत लोक में उत्तम हैं, लोक का हित करते हैं वगैरह बातें वास्तविक हैं, परंतु यह हितादि की