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________________ नमोत्थुणं सूत्र प्रवृत्ति वे किस तरह करते हैं ? ऐसी जिज्ञासा को तृप्त करने के लिए 'अभयदयाणं' आदि पाँच पदों की पाँचवीं (सामान्य उपयोग संपदा की) 'हेतु संपदा' बताते हुए कहा है कि, अभयादि भाव में रहे हुए प्रभु जगत् के जीवों को अभयादि देकर हित करते हैं । उसके बाद 'धम्मदयाणं' आदि पाँच पदों की छट्ठी (स्तोतव्य संपदा की ही) 'विशेष उपयोग संपदा' वर्णन की गई है । हेतु सहित सामान्य उपयोग को जानने के बाद भी बुद्धिमान जीवों को स्तुतिपात्र प्रभु का विशेष उपयोग जानने की इच्छा होती है । इन पदों द्वारा बताया है कि श्रुतधर्म रूप सामान्य धर्म की तरह चारित्रधर्म रूप विशेष गुणों को भी प्रभु प्राप्त करवानेवाले हैं । उसके बाद 'अप्पडिहयवरनाण' - आदि दो पदों की सातवीं (स्तोतव्य संपदा की) 'सकारण स्वरूप संपदा' बताई गई है । प्रभु सामान्य से और विशेष से किस तरह उपकार करते हैं, यह जानने के बाद भी प्रज्ञासंपन्न जीवों को इस प्रभु का स्वरूप क्या है ? यह जानने की इच्छा होती है, इसलिए ही इन दो पदों द्वारा प्रभु सर्वज्ञ हैं और सर्वदर्शी हैं, यह बताया गया है । ___ इतना जानने के बाद भी संपूर्ण सुखेच्छु साधक को प्रश्न उठता है कि, यह प्रभु हमें कहाँ तक पहुँचा सकेंगे ? उसके समाधान के लिए ही 'जिणाणं जावयाणं' आदि चार पदों की ‘आत्मतुल्य परफल कर्तृत्व' नाम की आठवीं संपदा बताई है । उसके द्वारा साधक को संतुष्ट भी किया है कि, किसी राजा, महाराजा, शेठ या सामंत की सेवा ऐसी नहीं है कि, जो अपने सेवक को अपने जैसा बनाए । जब कि, प्रभु के पास जो सुख है, वह पूर्ण सुख अनाशंस भाव से सेवा करनेवाला साधक प्राप्त कर सकता है । अरिहंत भगवंतो का पूर्ण स्वरूप ख्याल में आने के बाद भी दीर्घदृष्टिवान साधक को प्रश्न होता है कि ‘ऐसे प्रभु ने कैसे सुख को प्राप्त किया है ? वे अभी कहाँ है ? कितने समय ऐसी स्थिति में रहनेवाले हैं ?'
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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