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________________ नमोत्युणं सूत्र सूत्र परिचय : गणधर रचित इस स्तोत्र द्वारा इन्द्र महाराजा परमात्मा की स्तवना करते हैं, इसलिए इसका दूसरा नाम “शक्रस्तव" है । इस सूत्र में नमस्कार करने के लिए सहजता से बोल सकें, वैसे सरल पद होने से इसे "प्रणिपातदंडक" भी कहते हैं । ___ इस जगत् में भगवान को मानने वाले-पूजने वाले लोग तो बहुत हैं, परन्तु भगवान कैसे हैं, उनका वास्तविक स्वरूप कैसा है एवं ऐसे स्वरूपवाले भगवान को ही क्यों मानना या पूजना चाहिए, उसका ज्ञान बहुत लोगों को नहीं है । इसलिए वे पूजा के वास्तविक फल को नहीं पा सकते । इस सूत्र में भगवान का वास्तविक स्वरूप कैसा है एवं ऐसे ही भगवान की स्तवना किसलिए करनी चाहिए । उसका सुन्दर मार्गदर्शन दिया गया है, जिसे पढने से चैत्यवंदन आदि में विशिष्ट भाव उत्पन्न करके क्रिया को सफल किया जा सकता है । गणधरों की इस विशेष रचना में समाए हुए गूढ़ भाव अपने जैसे बाल जीवों के लिए समझना बहुत कठिन है, परन्तु हमारा महान पुण्योदय है कि चैत्यवंदन के कुछ सूत्रो में गणधर भगवंतों ने जो सूक्ष्म भाव गूढ़ तरीके से
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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