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सूत्र संवेदना - २
जाई जिबिंबाई ताई सव्वाई वंदामि (तथा) जो जिनेश्वरों के
बिंब हैं, उन सबको मैं वंदन करता हूँ ।
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यह सूत्र बोल हुए चौदह राजलोक में जहाँ जहाँ तीर्थ है और जहाँ जहाँ जिनबिंब है, उन उन स्थानों के स्मरण के साथ परमात्मा की स्मृति होनी चाहिए । परमात्मा संबंधी ये तीर्थ या परमात्मा की प्रतिमा वीतराग भाव को पैदा करवाने में प्रबल निमित्त हैं, उन्हें प्राप्त करके आज तक अनंत आत्माएँ संसार सागर को पार उतरने में सफल हुई हैं ।
इस बात को उपस्थित करके यह सूत्र बोलते हुए हमें सोचना चाहिए कि,
" जैसे अनंत आत्माओं ने इस आलंबन को प्राप्त करके वीतरागभाव को प्राप्त किया, वैसे मैं भी इन तीर्थादि की वंदना से वीतरागभाव को प्राप्त करूँ और अनादिकाल से दु:खी करनेवाले इन रागादि दोषों को दूर करूँ ।”
यदि ऐसे भावपूर्वक परमात्मा की वंदना की जाए, तो वंदन करनेवाली आत्मा कोई अगोचर भाव को प्राप्त करके, महानिर्जरा करने के द्वारा जरूर आत्मा की शुद्धि करके आत्मिक आनंद को प्राप्त कर सकती हैं ।
जिज्ञासा : शत्रुंजयादि तीर्थ को तीर्थ कहा जाता है, वैसे स्वर्गादि में रहे हुए जिनमंदिरों को भी तीर्थ कह सकते हैं ?
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तृप्ति शत्रुंजयादि तीर्थ की तरह जो जिनमंदिर सौ वर्ष या उससे ज्यादा प्राचीन हों, बहुत समय से पूजे गए हों तथा जिनमें विशेष तारक शक्ति हो, उन जिनमंदिरों या जिन ( परमात्मा ) संबंधी स्थान भी तीर्थ कहलाते हैं । इसलिए स्वर्ग में, पाताल में या मनुष्यलोक में जो शाश्वत जिनमंदिर हैं, उन्हें तीर्थ कहा जा सकता है ।
जिज्ञासा : 'जाई जिणबिंबाई' में बहुवचन का प्रयोग क्यों किया गया ?
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तृप्ति : सामान्यतया ज्यादा मंदिर या प्रतिमाएँ विशेष भावोल्लास का कारण बनती हैं और बहुवचनांत शब्द द्वारा बहुत से जिनबिंबों की सहज