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सूत्र संवेदना - २ इस संघयणवाले जीव के शरीर की मजबूती विशेष प्रकार की होती है। इस संघयणवाली आत्माएँ ही मोक्ष पा सकती हैं । दूसरे किसी भी संघयण-वाले जीवों में ऐसा सत्त्व या शक्ति नहीं होती कि वे सभी कर्मों का नाश करके मोक्ष में जा सकें । इसीलिए अरिहंत भगवंत को वज्रऋषभनाराच नामक पहला संघयण होता है ।
उक्कोसय सत्तरीसय जिणवराण विहरंत लब्भइ; - उत्कृष्ट से 5१७० जिनेश्वर एक साथ विचरते हैं ।
प्रथम गाथा में कहे गए विशेषणों वाले, कर्मभूमि में जन्मे हुए और विशेष प्रकार के शारीरिक बलवाले अरिहंत भगवान एक साथ ज्यादा से ज्यादा १७० विचरते हैं । अजितनाथ भगवान के समय में ऐसा हुआ था । यह पद बोलते हुए उन-उन क्षेत्र में विचरते १७० जिनों को ध्यान में लाकर, उनको प्रणाम करने से भावोल्लास की वृद्धि होती है ।
अरिहंत की उत्कृष्ट संख्या बताने के बाद जब उत्कृष्ट संख्या में अरिहंत भगवंत विचरते हों, तब उत्कृष्ट से केवली तथा मुनि भगवंतों की संख्या कितनी थी और वर्तमान में कितनी है, यह बताते हैं ।
नव कोडिहिं केवलीण - सामान्य केवलियों की संख्या ज्यादा से ज्यादा नौ करोड़ हो सकती है । |
अजितनाथ भगवान के समय में जब १७० तीर्थंकर विचरते थे, तब नौ करोड़ केवलज्ञानी थे ।
5. १७० जिन के क्षेत्र :
भरत ऐरवत जंबूद्वीप १६ १ धातकीखंड २, २ पुष्करावर्त्तद्वीप . २ २
महाविदेह की विजय ३२ ६४ ६४
१६०(५+५+१६०=१७०)