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________________ जगचिंतामणी सूत्र ४१ यह पद बोलते वक्त सोचना चाहिए, “परमात्मा ही हमें दुर्गति से, जीवों के वध से और कर्म से मुक्त करवाकर हमारा रक्षण करते हैं । ऐसे दुःखों से बचाने की शक्ति परमात्मा या परमात्मा की वाणी के सिवाय अन्य किसी में नहीं है । अगर मुझे इन मुसीबतों से अपने आप को सुरक्षित रखना है, तो परमात्मा के वचन को एक क्षण भी भूलना नहीं चाहिए।" ऐसी संवेदना के साथ परमात्मा का जगत के रक्षक रूप में ध्यान हो, तो उपर्युक्त तीनों बातों से जरूर रक्षण होता है । जग-बंधव ! - हे जगबंधु ! खून के संबंध से बंधे भाई या निकटवर्ती स्वजनों को बन्धु कहते हैं। संसार में सामान्य नियम है कि, जैसे राम-लक्ष्मण, कृष्ण-बलदेव, पाँच पांडव वगैरह बंधु सुख-दुःख में साथ रहते हैं, वैसे परमात्मा भी एक सगे भाई की तरह संपूर्ण जगत् के हितचिंतक के रूप में जगत के साथ रहते हैं, इसलिए परमात्मा जगत् के बांधव कहलाते हैं । संसार में बांधव हमेशा साथ दें, ऐसा नहीं होता, कई बार दुःख के समय भाई दूर भी हो जाते हैं, परंतु जगत् में कल्याण करने की इच्छावाले जगत् के बंधु समान परमात्मा एक मात्र ऐसे हैं कि, जो दुःख के समय में भी कभी दूर नहीं होते । जिस भक्त के हृदय में परमात्मा का निवास होता है, वह भक्त परमात्मा के प्रभाव से संसार की आपत्तियों में से सही सलामत उत्तीर्ण हो जाता है । कभी कभार पापकर्म का प्रबल उदय हो, तो भक्त की बाह्य परिस्थिति न भी पलटे परन्तु परमात्मा के प्रभाव से उसकी मनःस्थिति तो बदल ही जाती है, उसी कारण उस साधक को बाह्य आपत्ति भी आपत्ति रूप नहीं लगती, अपना कर्मक्षय का साधन लगती है, जिससे अत्यंत समाधिपूर्वक वह उन्हें सहन कर सकता है, मात्र सहन करता है ऐसा नहीं, परन्तु जैसे अच्छा व्यापारी 'ग्राहक की गाली' दुःखकारक होने के बावजूद भी उसे
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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