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सूत्र संवेदना - २
अकार्य द्वारा जो जीव दुर्गति के योग्य कर्म को बाँध रहे हों, वैसे जीवों को परमात्मा धर्म का उपदेश देकर, अकार्य से रोककर, सत्कार्य करने की प्रेरणा देते हैं । जिससे जीव दुर्गति से बचकर सद्गति में जाता है । इस प्रकार भगवान उसका दुर्गति से रक्षण करते हैं ।
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२. परमात्मा छः काय जीवों के प्राणनाश रोकने का उपदेश देकर उन जीवों का रक्षण करते हैं ।
जगत् के जीव प्रायः स्वार्थ प्रधान और भौतिक सुख की इच्छावाले होते हैं । अपने स्वार्थ और सुख के लिए बात-बात में वे अनंत जीवों का संहार कर देते हैं, जब कि अनंत करुणा के स्वामी परमात्मा अपने सर्व स्वार्थ और सुख का त्याग करके, प्रतिकूलताओं को स्वीकार करके छः काय जीवों के रक्षण में प्रयत्नशील रहते हैं । साथ में अन्य को भी जीव रक्षा का उपदेश देते हैं। उस उपदेश को अपनाकर अनेक भव्यात्माएँ भी छः काय की रक्षक बनती हैं । इस प्रकार परमात्मा छः काय जीवों के रक्षक हैं ।
३. परमात्मा कर्म के बंधन से जीवों को मुक्त करवाकर मोक्ष को प्राप्त करवाते हैं। इस प्रकार वे जगत के रक्षक के रूप में पूजे जाते हैं ।
“कर्म से संबंधित होने के कारण ही आत्मा को संसार में भटकना पड़ता है । कर्म के कारण ही जन्म-मरण के दुःखों को भुगतना पड़ता है और कर्म के कारण ही महादुःख को उत्पन्न करनेवाले रागादि कषायों के अधीन होना पड़ता है। अज्ञान आदि दोषों के कारण ही जीव सतत ऐसे कर्मों को बांधते हैं । प्रतिक्षण बंधनेवाले ऐसे कर्मों का आस्रव रोकने के लिए जगत्त्राता प्रभु ने सम्यग्ज्ञान और सत्क्रिया रूप सुंदर साधन बताए हैं। इन दोनों के माध्यम से योग्य जीव, कर्म के बंधन से मुक्त होकर, मोक्ष सुख को प्राप्त कर सकते हैं। मोक्ष में जाने के बाद वे स्वयं तो सदा सुरक्षित हैं ही; अन्य को भी उनसे कोई भय नहीं रहता ।