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जगचिंतामणी सूत्र
तीन जगत् के नाथ मेरे साथ हैं। इसलिए अब मुझे कोई अंतरंग या बाह्य युद्ध में नहीं हरा सकता ।
जग-गुरु ! - हे जगत् के गुरू !
गृणाति तत्त्वं इति गुरुः जो तत्त्व का मार्ग बताते हैं, वे गुरु कहलाते हैं । अथवा गु = अंधकार और रु = प्रकाश । अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाएँ, वे गुरु कहलाते हैं।
परमात्मा ने समग्र विश्व को तत्त्वज्ञान देकर अज्ञान के अंधकार से बचाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाया है, इसीलिए परमात्मा जगत् के गुरु हैं । यह पद बोलते हुए सोचना चाहिए कि,
"मैं कितना भाग्यशाली हूँ कि, मुझे परमात्मा जैसे गुरु मिले हैं, जिन्होंने वास्तविक तत्त्व का बोध करवाकर मुझे दुःखमुक्ति का और सुखप्राप्ति का सच्चा मार्ग बताया है । संसार में भगवान जैसे श्रेष्ठ कोई गुरु नहीं है । ऐसे गुरु के वचन रूप प्रकाश के माध्यम से अगर मैं अपना जीवन जीने का प्रयत्न करूँ, तो जरूर थोड़े समय में ही दुःख भरे संसार से छूटकर,
सुखी हो सकूँगा ।” इस प्रकार अनंत उपकारी के रूप में परमात्मा के दर्शन करने से परमात्मा के प्रति आदर एवं अहोभाव बढता जाता है ।
जग-रक्खण ! - हे जगत् के रक्षक !
आपत्ति के समय जो रक्षण करता है, वह रक्षक कहलाता है । आपत्ति में पड़े हुए जीवों का भगवान तीन प्रकार से रक्षण करते हैं, इसलिए भगवान तीन प्रकार से जगत के रक्षक हैं । रक्षण के तीन प्रकार : १. परमात्मा दुर्गति में पड़े जीवों को बचाकर सद्गति में स्थापित करते हैं।