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________________ सूत्र संवेदना नवकोडिहिं केवलीण, नव सहस्स कोडि साहु गम्मइ । नवकोटयः केवलिनां, नव सहस्त्राणि कोटि साधवः गम्यते । नौ करोड़ केवलज्ञानी और नौ हजार करोड साधु प्राप्त होते हैं । संपp वीस जिणवर बिहं कोडिहिं वरणाण मुणि, सम्प्रति विंशतिः जिनवराः, द्वे कोटी वरज्ञानिनः मुनयः, ३४ २ वर्तमान में बीस तीर्थंकर भगवंत, दो करोड केवलज्ञानी मुनि । सहस्सदुअ कोडी समण विहाणि नि थुणिज्जई ।।२।। सहस्त्रद्विकं कोटि श्रमणानां विभाते नित्यं स्तूयते ।।२।। (और) दो हजार करोड़ श्रमण भगवंत ( हैं ), उनकी प्रभात में सदैव स्तुति की जाती है ।।२।। सामिअ जयउ ! सामिअ जयउ ! सत्तुंजि रिसह ! स्वामिन् जयतु ! स्वामिन् जयतु ! शत्रुञ्जये ऋषभ ! हे स्वामी ! आप की जय हो ! जय हो ! हे स्वामी, शंत्रुजय पर ऋषभदेव, उचिंति पहु- नेमिजिण, सउरि - मंडण वीर ! उज्जयन्ते प्रभु-नेमिजिन, सत्यपुरमण्डन वीर ! गिरनार के नेमिनाथ भगवान, सांचोर (सत्यपुर) मंडण महावीर स्वामी भरुअच्छहिं मुणिसुव्वय ! दुह-दुरिअ खंडण महुरिपास जयउ ! भृगुकच्छे मुनिसुव्रत ! दुःखें- दुरितखण्डन मथुरायां पार्श्व जयतु ! भरूच के मुनिसुव्रत स्वामी ! दुःख और दुरित का नाश करनेवाले मथुरा के पार्श्वनाथ प्रभु ! आपकी जय हो ! विदेहं चिहुँ दिसि विदिसि जिं के वि अवर तित्थयरा, विदेहे चतसृषु दिक्षु विदिक्षु ये केऽपि अपरे तीर्थकराः, महाविदेह क्षेत्र में, चारों दिशा या विदिशा में जो कोई दूसरे तीर्थंकर (हैं, उनको)
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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