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________________ जगचिंतामणी सूत्र अन्वय सहित शब्दार्थ : भगवन् इच्छाकारेण संदिसह ! चैत्यवंदन करूं ? इच्छं. भगवन् इच्छाकारेण संदिशत चैत्यवंदनं कुर्याम् ? इच्छामि ! हे भगवान ! स्वेच्छा से आप आज्ञा दें मैं चैत्यवंदन करूँ ? आपकी इच्छा प्रमाण है । जग-चिंतामणि ! जग-नाह ! जग-गुरू ! जग-रक्खण ! जगञ्चिंतामणयः ! जगन्नाथाः ! जगद्गुरवः ! जगद्रक्षणाः ! जगत् में चिंतामणि रत्नसमान, जगत के नाथ, जगत के गुरु, जगत की रक्षा करनेवाले । जग-बंधव ! जग-सत्थवाह ! जग-भाव-विअक्खण ! जगद्बान्धबाः ! जगत्-सार्थवाहाः ! जगद्भाव-विचक्षणाः ! । जगत् के बंधु, जगत् के सार्थवाह, जगत् के सभी भावों को जानने में अत्यंत निपुण । अट्ठावय-संठविअ-रूव ! कम्मट्ठ-विणासण ! अष्टापद-संस्थापित-रूपाः ! कर्माष्टक-विनाशनाः ! अष्टापद पर्वत के ऊपर प्रतिमाएँ संस्थापित हैं जिनकी और आठ प्रकार के कर्म का नाश करनेवाले । अप्पडिहय-सासण ! चउवीसंपि जिणवर जयंतु ।।१।। अप्रतिहत-शासनाः ! चतुर्विंशतिरपिजिनवराः जयन्तु ! ।।१।। अखंडित शासनवाले चौबीसों जिनेश्वर जय को प्राप्त करें ।।१।। कम्मभूमिहिं कम्मभूमिहिं पढम संघयणि, कर्मभूमिषु कर्मभूमिषु प्रथमसंहननिनां, कर्मभूमिओं में प्रथम संघयणवाले । उक्कोसय सत्तरिसय जिणवराण विहरंत लब्भइ, उत्कृष्टतः सप्ततिशतं जिनवराणां विहरतां लभ्यते; उत्कृष्ट से १७० जिनेश्वर (एक साथ) विचरते हुए प्राप्त होते हैं ।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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