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जगचिंतामणी सूत्र
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इस सूत्र द्वारा अष्टापद पर बिराजमान २४ परमात्मा के बिंबों को, उत्कृष्ट काल में विचरते १७० जिनों को, ९ करोड़ केर्बली भगवंतों को तथा ९ हजार साधु भगवंतों को वंदना की गई है । इसके अलावा अनेक तीर्थ स्थान तथा उन में बिराजमान परमात्माओं और शाश्वत प्रतिमाओं को वंदना
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जाती है ।
इस सूत्र के विषय में ऐसा उल्लेख मिलता है कि, अष्टापद तीर्थ में भरत महाराज द्वारा बनवाए गए २४ जिन बिंबों को देखकर, उनके दर्शन-वंदन करके भाव विभोर बने हुए श्री गौतमस्वामी महाराज ने इस सूत्र की प्रथम दो गाथा बनाई। गौतम महाराज को श्री अरिहंत परमात्मा में रहे हुए आर्हन्त्य का सम्यग् बोध था, इसलिए ऋषभादि २४ बिंबों को देखते ही उनके हृदय में रहे हुए भाव शब्दों में व्यक्त हुए है । अतः आज भी इन शब्दों के माध्यम से जो परमात्मा की भक्ति करते हैं, उनका हृदय भावयुक्त बनकर अत्यंत निर्मल हुए बिना नहीं रहता ।
प्रातःकाल में, रात्रि - प्रतिक्रमण की शुरुआत में तथा संयमी आत्माएँ, पौषधधारी आराधक वगैरह पच्चक्खाण पारते हुए और आहार करने के बाद मध्याहन के समय जो चैत्यवंदन करते हैं उसमें इस सूत्र का उपयोग करते हैं। प्रातःकाल में जगत् के नाथ, जगत् के रक्षक, जगत् के भावों को जानने में विचक्षण वगैरह विशेषणों द्वारा परमात्मा की स्तवना की हो तो पूरे दिन यह स्मृति में रहता है कि, 'ऐसे नाथ मेरे साथ हैं, ऐसे भगवान का मैं भक्त हूँ। अब मुझे किसी का भय नहीं है । अब मुझे ऐसे परमात्मा के वचनों को स्मरण में रखकर, उनके अनुसार मेरा जीवन जीना है, इससे निश्चित मेरा कल्याण होगा । ऐसे भाव के लिए प्रातः काल इस सूत्र के माध्यम से परमात्मा की स्तवना की जाती है और दोपहर के समय आहार लेने से पहले और आहार लेने के बाद प्रकृष्ट कोटि के अप्रमत्त भाव में स्थिर और अणाहारी भाव को पाए हुए परमात्मा आदि की स्मृति द्वारा आहार लेते समय या आहार लेने के बाद हम प्रमादभाव के आधीन न बन जाएँ, ऐसा सत्त्व प्रकट करने के लिए यह चैत्यवंदन किया जाता है ।
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