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________________ जगचिंतामणि सूत्र सूत्र परिचय : यह सूत्र एक चैत्यवंदन है । प्रातः काल की आवश्यक क्रिया में इस चैत्यवंदन सूत्र का विशेष उपयोग होने से इसका दूसरा नाम “प्राभातिक चैत्यवंदन" अथवा "प्रबोध चैत्यवंदन" भी है । चैत्यवंदन अर्थात् चैत्य को वंदन । उसमें “चैत्य" शब्द जिनप्रतिमा, तीर्थ और जिनमंदिर इन तीनों अर्थ में रूढ़ है । इस सूत्र में तीनों की वंदना की गई है, इसलिए इसे चैत्यवंदन सूत्र कहते हैं । "चैत्य" शब्द ‘चित्त' शब्द से बना है । इसका चित्त संबंधी या चित्त में, ऐसा अर्थ होता है । जिनप्रतिमा, जिनमंदिर आदि चित्त में शुभ भावों को उत्पन्न करने का प्रबल कारण है । कारण में कार्य का उपचार करके जिनप्रतिमा आदि भी चैत्य कहलाते हैं । ऐसे चैत्य को जिस स्तोत्र आदि के माध्यम से वंदन किया जाता है, उसे भी चैत्यवंदन कहते हैं । सम्यक् प्रकार से चैत्यवंदन करने से शुभभाव उत्पन्न होता है। उस शुभभाव से कर्म का क्षय होता है और कर्म का क्षय होने से सभी प्रकार का कल्याण होता है । 1. चित्तम् - अन्तः करणं, तस्य भावः कर्म वा “चैत्यं" । चिद् अनीत अत्मन्निति चैत्यम् । - ललित विस्तरा । 2. चैत्यवंदनतः सम्यक्, शुभो भावः प्रजायते । तस्मात् कर्मक्षयः सर्वं, ततः कल्याणमश्नुते ।। __- ललित विस्तरा ।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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