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________________ सूत्र संवेदना - २ वह भौतिक सुख का कारण बनती है और कषायों के नाश द्वारा आध्यात्मिक सुख का कारण बनती है, इसीलिए वह सकल कुशलरूप फल को देनेवाली लता कही गई है । याद रखें कि, पुष्करावर्त मेघ भी योग्य भूमि को ही भीगोकर उपजाऊ बना सकता है । मगशेलिये पत्थर को तो वह भी नहीं भीगो सकता । बस, उसी प्रकार परमात्मा भी श्रद्धा से कोमल बने हुए आस्तिक हृदय का ही कल्याण करते हैं, नास्तिक का नहीं । यह पद बोलते हुए साधक सोचता है, "पुष्करावर्त मेघ तुल्य भगवान सतत कृपा की वर्षा कर रहे है, उनके वचन का पानी सतत बह रहा है, परंतु इस पानी को पाने के लिए हृदय रूप धरती में श्रद्धा रूप मिट्टी तो होनी चाहिए ना ? यदि मेरे हृदयमें प्रभु के प्रति आस्था न हो, जिन वचन के प्रति श्रद्धा न हो, तो यह कृपा का पानी मेरा कल्याण कैसे करेगा ? इसीलिए पहले मैं अपने हृदय को श्रद्धा रूप मिट्टी जैसा कोमल बनाऊँ ।” दुरिततिमिरभानु :- पाप रूप अंधकार (का नाश करने) के लिए सूर्य तुल्य (वे शांतिनाथ भगवान सदैव तुम्हारे श्रेय के लिए हो ।) दुरित मतलब पाप । पाप को यहाँ अंधकार की उपमा दी गई है, क्योंकि अंधकार में आदमी यहाँ-वहाँ लड़खड़ाता है, टकराता है और दुःखी होता है। वैसे ही पापी आत्मा भी इस संसार में अनंतकाल तक इधर-उधर लड़खड़ाती रहती है, टकराती है और दुःखी होती है, परंतु उसको सच्चे सुख की दिशा नहीं मिलती । __ ऐसे पाप रूपी अंधकार का नाश करने के लिए भगवान भानु याने सूर्य जैसे हैं । सूर्य का उदय होने पर जैसे-जैसे प्रकाश की किरणें पृथ्वी तल के ऊपर प्रसरती हैं, वैसे-वैसे अंधकार का नाश होता है, उसी तरह अरिहंत परमात्मा का इस धरती पर अवतार होने के बाद जैसे-जैसे उनकी
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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