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सूत्र संवेदना - २
नज़र के सामने तैरने लगते हैं और ऐसे नाथ का शरण स्वीकार कर स्व- पर
के श्रेय की इच्छा तीव्र - तीव्रतर बनती है ।
मूल सूत्र :
सकलकुशलवल्ली - पुष्करावर्तमेघो, दुरिततिमिरभानुः, कल्पवृक्षोपमानः । भवजलनिधिपोतः, सर्वसंपत्तिहेतुः,
स भवतु सततं वः, श्रेयसे शांतिनाथः । । १ । ।
अन्वय सहित शब्दार्थः
सकलकुशलवल्ली-पुष्करावर्तमेघो, दुरिततिमिरभानुः, कल्पवृक्षोपमानः । भवजलनिधिपोतः, सर्वसंपत्तिहेतुः स शांतिनाथः सततं वः श्रेयसे भवतु ।। सर्वकल्याणरूप फल देनेवाली लता को सींचनेवाले पुष्करावर्त मेघ के जैसे, पाप रूपी अंधकार का नाश करने में सूर्य समान, कल्पवृक्ष के समान, संसार समुद्र से तैरने के लिए जहाज तुल्य (और) सर्वसंपत्ति के कारणभूत ऐसे शांतिनाथ भगवान निरंतर आप सब का कल्याण करें ।
विशेषार्थ :
सकलकुशलवल्लीपुष्करावर्तमेघो प्रभु सकल कुशलरूप फल को देनेवाली लता को सींचनेवाले पुष्करावर्त मेघ जैसे हैं ।
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इस स्तोत्र में स्तोत्रकार नै पाँच विशेषणों द्वारा परमात्मा की स्तुति की है । उसमें सर्वप्रथम परमात्मा को सकल कुशल की वेली के लिए पुष्करावर्त मेघ जैसे कहे हैं । पुष्करावर्त मेघ याने बहुत आवर्तो के साथ बरसने वाली वर्षा । जब बहुत समय तक ऐसी बारीश होती है, तब उस बारीश का पानी जमीन में बहुत गहराई तक पहुँचता है, उससे जमीन इतनी नरम और उपजाऊ बन जाती है कि फिर अगर १०००० वर्ष तक भी उस जमीन पर बारीश न हो, तो भी वहाँ बीज बोने से वर्षों तक फल की प्राप्ति होती रहती है ।