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सकलकुशलवल्ली सार्थ
सूत्र परिचय :
यह स्तोत्र किसने बनाया, कब से चैत्यवंदन में शामिल हुआ, उस के बारे में कोई उल्लेख नहीं मिलता, परंतु इस स्तोत्र में सामान्य जन समझ सकें, ऐसी भाषा में परमात्मा के गुणों का वर्णन है, इसी लिए गीतार्थ गुरुभगवंतों ने चैत्यवंदन के प्रारंभ में इस सूत्र को बोलना शुरू किया होगा, ऐसा अनुमान है।
लोकोक्ति ऐसी है कि, श्री विजयप्रभसूरी म.सा. को जब आचार्यपदवी प्रदान की गई तब सहज उनके मुख से यह श्लोक निकला था । इसका अगर जानकारी पूर्वक अर्थ किया जाय तो इसमें सुवर्ण सिद्धि हो सकती है।
वर्तमान काल के प्रचलित व्यवहार के अनुसार चैत्यवंदन के प्रारंभ में ही यह स्तोत्र बोला जाता है । छोटे से इस स्तोत्र में अचिंत्य शक्तियुक्त शांतिनाथ भगवान के पाँच विशेषणों द्वारा स्तवना की गई है । इन पाँच विशेषणों से विशिष्ट अरिहंत परमात्मा को हृदयस्थ करके, अगर उनके प्रति अत्यंत आदरपूर्वक हम इस स्तोत्र के एक-एक शब्द को बोलें, तो हमारा परमात्मा के प्रति आदरभाव बढ़ता है । उनकी परमोपकारिता आदि गुण