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सूत्र संवेदना - २
सूत्र का अर्थ समझते समय इन छः मुद्दों को ध्यान में रखना चाहिए। इन छः लक्षणों के जिज्ञासा आदि ७ कारण भी बताए गये हैं । इन ७ अंगों के बिना तात्त्विक तौर से सूत्र की व्याख्या (अर्थ) समझी नहीं जा सकती । उसके बिना सूत्र का शाब्दबोध हो सकता है, परंतु सूत्र के तात्त्विक भावों तक नहीं पहुँचा जा सकता । इसलिए चैत्यवंदन सूत्रों के अर्थ सीखने से पहले निम्नोक्त गुण अपने में उत्पन्न करने का प्रयत्न करना चाहिए ।
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१. जिज्ञासा : जानने की इच्छा - चैत्यवंदन करके मुझे कौन से भाव उत्पन्न करने हैं - यह जानने की अभिलाषा होनी चाहिए ।
२. गुरुयोग : वास्तविक अर्थ को बतानेवाले, परोपकार में लगे हुए, दूसरों के आशय को जाननेवाले ऐसे सद्गुरू के साथ सम्यक् संबंध होना चाहिए; तभी सूत्र के भाव तक पहुँचने का ज्ञान मिल सकता है।
३. विधिपरता : गुरुमूख से सूत्रों के अर्थ सीखते समय मुडली में व्यवस्थित बैठना, गुरु का आसन बिछाना, अन्य सभी विक्षेपों का त्याग करना और उपयुक्त बनकर ध्यान से गुरु की वाचना सुनना; यह अर्थ का ज्ञान लेने की विधि है ।
४. बोध की परिणति : अर्थ का ज्ञान पाकर उसे स्थिर करना चाहिए एवं यह ज्ञान कुतर्कों से मुक्त तथा मार्गानुसारी होना चाहिए ।
५. स्थैर्य : ज्ञान की समृद्धि का अभिमान नही होना चाहिए, दूसरों की मश्करी न हो, विवाद न हो, कम समझनेवालों की बुद्धि में भ्रम पैदा न हो उसका ध्यान रखना चाहिए ।
६. तथा उक्त क्रिया : शास्त्र में जिस तरह क्रिया करने को बताया गया हो उसी तरह से क्रिया करनी चाहिए ।
७. अल्प भवता एक पुद्गल परावर्त के बराबर अल्प काल का संसार भ्रमण बाकी होना चाहिए ।
जिस व्यक्ति में उपर्युक्त ७ अंग होते हैं वही, सूत्रों के तात्पर्य तक पहुँच सकता है याने उसमें ही ज्ञान परिणत होता है ।