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________________ ३३२ सूत्र संवेदना - २ इच्छानुसार कार्य करें । इसलिए चैत्यवंदन जैसा महान अनुष्ठान करने के पूर्व भी इस प्रकार आदेश माँगकर, उसको स्वीकार करके चैत्यवंदन का प्रारंभ करना चाहिए। २. उसके बाद सकलकुशलवल्ली० कहकर अपनी इच्छानुसार किसी भी बोलकर एक भगवान का चैत्यवंदन करके, जं किंचि सूत्र कहें। विनयपूर्वक चैत्यवंदन करने का आदेश प्राप्त कर बाँयां घुटना नीचे स्थापित कर, दाहिना घुटना ज़मीन से कुछ ऊँचा रखकर, हाथ को योगमुद्रा में स्थापित करके भावोल्लासपूर्वक परमात्मा के उन-उन गुणों के स्मरण के लिए सकलकुशलवल्ली स्तोत्र तथा अपनी भाववृद्धि का कारण बनें, ऐसा कोई भी एक चैत्यवंदन बोलना है। चैत्यवंदन पूरा होने पर सभी तीर्थों और सभी बिंबों को वंदन करके अपनी आत्मा को मैं कृतार्थ करूँ, ऐसे भावपूर्वक तीर्थवंदन अर्थात् कि जं किंचि सूत्र बोलना चाहिए । ३. उसके बाद 'नमोऽत्थु णं' सूत्र बोलें। 'जं किंचि सूत्र' द्वारा सभी तीर्थों की वंदना करने के बाद भाव अरिहंत के गुणों की स्तवना रूप 'नमोऽत्थु णं' सूत्र बोलना चाहिए। अर्थ के उपयोगपूर्वक यह सूत्र बोलने से अरिहंत परमात्मा जगत् के जीवों पर किस तरह उपकार करते हैं, उनका लोकोत्तर स्वरूप कैसा है, उनका बाह्यवैभव, अंतरंग गुणसमृद्धि कैसी है, वगैरह की स्मृति होती है। उससे साधक आत्मा का चित्त अरिहंत परमात्मा के प्रति बहुमानवाला होता है, मन आनंदित होता है और उन-उन गुणों के प्रति आदर और बहुमान बढ़ता है। यह सूत्र योगमुद्रा में रहकर बोलना है, पर उसके आदि और अंत में पाँच अंगपूर्वक नमस्कार की क्रिया करनी चाहिए। इस सूत्र की अंतिम गाथा में भूतकाल में हो चुके, वर्तमान में भी द्रव्यजिन के रूप में जो अरिहंत परमात्मा विचरते हैं, तथा भविष्य में होनेवाले अरिहंत भगवंतों को वंदना की जाती है। ४. फिर जाति चेईआई सूत्र बोलें । भाव अरिहंत को वंदना करने के बाद उनके प्रति अत्यंत भक्तिभाव बढ़ने से अरिहंत भगवंत की प्रतिमाओं को वंदन करने का मन होता है।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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