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________________ ३२६ सूत्र संवेदना - २ कुछ कर सकते है, तो भी यहाँ वैसा न करते हुए कायोत्सर्ग करने का विधान किया, उसका कारण ऐसा लगता है कि, चैत्यवंदन की यह क्रिया भावस्तवरूप है । भावस्तवरूप इस क्रिया में भाव का प्राधान्य है। उससे कायोत्सर्ग द्वारा भाव से उनका स्मरण किया जाता है और वस्तु के अर्पण आदि में तो पापक्रिया (सावद्य=हिंसामय) भी होती है। जब कि यह तो निरवद्य (अहिंसामय) उपाय है । अरिहंतादि के ध्यान में लीन होने का भाव उत्तम होने से इस प्रसंग में ऐसे उत्तम भाव का प्रदान विशेष लाभ का कारण बन सकता है। उसके लिए चैत्यवंदन की क्रिया में उन देवों के स्मरण के लिए कायोत्सर्ग किया जाता है ।। अन्य स्थानों में इन देवों के आह्वान आदि के लिए बलि-(बाकला) बलिदान या उत्तम द्रव्य को प्रदान करने की विधि भी देखने को मिलती है, इसलिए शास्त्रीय विधान हो, वहाँ यह न हो वैसा भी नहीं है । जिज्ञासा : चैत्यवंदनादि क्रिया में औचित्य के लिए ऐसे देवों को याद करना, ठीक बात है, परन्तु स्मरण करने के बावजूद वे आते तो नहीं हैं, तो किसलिए उनको याद करके कायोत्सर्ग करना चाहिए ? तृप्ति : देवों का स्मरण करके जब-जब कायोत्सर्ग किया जाता है तबतब वे देव आएँ या न आएँ, तो भी कायोत्सर्ग करनेवाले को पुण्य-बंध, विघ्न-उपशमादि शुभ फल मिलता है । जैसे परमात्मा को प्रार्थना करने से परमात्मा के न आने के बावजूद, उस प्रार्थना वगैरह से कार्यसिद्धि होती है, वैसे ही इस कायोत्सर्ग से भी कार्यसिद्धि होती है ऐसा शास्त्रकारों ने (ज्ञानियों ने) ही बताया है । कायोत्सर्ग करना चाहिए, ऐसा आप्त पुरुष (ज्ञानी पुरुष) का वचन है । चैत्यवंदन द्वारा प्राप्त हुए शुभ भावों में जो-जो निमित्तरूप बनते हैं, उनको यथायोग्य तरीके से नमन-वंदन या स्मरण करना मेरे लिए उचित आचरण है अर्थात् योग्य ही है, वैसा मानकर ही साधक चैत्यवंदन में
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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