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वेयावच्चगराणं सूत्र
३२७ 'जावंत के वि साहू' सूत्र बोलकर भावस्तव को करनेवाले साधु भगवंतों को वंदन करते हैं, 'पुक्खरवरदी' बोलने द्वारा चैत्यवंदनादि शुभ अनुष्ठान को बतानेवाले श्रुतज्ञान को वंदन करते हैं । 'सिद्धाणं बुद्धाणं' बोलकर चैत्यवंदन का अंतिम फल प्राप्त करनेवाले सिद्ध भगवंतों को नमस्कार करते हैं और अंत में यह सूत्र बोलकर शासन की सेवा, रक्षा और योग्यात्माओं को समाधि वगैरह में सहायक बननेवाले देवों का स्मरण करते हैं । इस प्रकार कृतज्ञता के भाव से साधक इस सूत्र के द्वारा अपने औचित्य का पालन करते हैं ।